Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 189 शब्द - GS - 066 67 सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) शब्दार्थ कथा| पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ कथा | पृष्ठ पंक्ति आसासंती આશ્વાસન દેતી 64 30 7 कहा-६७ वोलीणे પસાર થતાં 64 31 1 | विऊ પંડિત अयगरेण . अधि४२५। 5 64 31 5 पणयिणी પત્ની 67 36 7 અર્ધી ગળી ગયેલી 64 31 5 चंकमंती - ભટકતી 67 37 1 परिव्वइओ પ્રવ્રજ્યા પામ્યો 64 31 11 કુળ મર્યાદાને 67 37 2 - सणियाणं સાતિચાર 31 12 इती, घासी कहा-६५ सामे दूइहुत्तंसी 67 अंतरावणे દુકાનમાં 32 4 | निग्घिणचरियं भ्रष्ट यरित्र 67 37 9 समियं લોટ 32 7 | दुहियाविव પુત્રીની જેમ 67 37 12 किणिउणं ખરીદવા માટે 65 32 7 , अण्णराएहिं બીજા રાજા વડે 67 39 3 तेणोगासेण તે રસ્તે 33 6 उवयरिओ મોકલાયો 67 39 3 अच्छइ જાઓ છો 33. 9 कहा-६८ ध-विढत्तं મેળવેલું 33 13 | कीरवरमिहुणं કીર-પોપટ પક્ષીનું યુગલ 68 39 19 कहा-६६ કુતૂહલના કારણે 68 39 20 परियणसहिया परिवार साथे 66 34 8 मिहुणं યુગલ 68 39 - अणिमिसच्छाई भनिभेष नयनो 66 35 2 |-परियरणाए सेवाया. 68 39 નીરખે છે 66 35 2 | पणट्ठपिम्मरसभरं नाश पामेवा प्रेमरसवा 68 40 आगयपन्हा स्तनमाथी दूधनी धारा 66 35 3 कट्ठव्व नी भ. 68 40 विणयपणयंगी विनयपत्रवाणी | जरजज्जरुब्व ५२थी पाउतना भ 68 40 परिपक्करसदक्खा 52541. २सद्राक्ष 66 35 8 वेरिलच्छीवेणीआगरि- शत्रुभोना सभी३पी स्त्रीमानी पयडियजहत्थनामा 53 नामने यथार्थ ४२ता. 66 35 11 | सणिक्कदुल्ललिओ ान याम मानह मानना२६८ 40 14 सुक्कज्झाणानल- शुस ध्याननो मनि 66 35 12 | चिट्ठेइऽही सही छ 68 40 18 23u au नाई

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