Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ श्लोकानामकारादिक्रमेण सूचिः 183 पृष्ठ / कथा पष्ठ श्लोकादि / कथा 108 16 105 86 145 88 | श्लोकादि दुण्हं रायकुमाराणं दुहं समणवराणं देवगुरूण सेवाए देवाणंदाइ वुड्डत्ते देविंदा दाणविंदा य दो पुरिसे धरइ धरा दोहग्गदूसिआ जे ते पंचसु जिणकल्लाणेसु परनिंदा न कायव्वा पराववायतल्लिच्छपवरपुरिसेसु नेहो पहुभत्तिपहावेणं पाखंडिजणसंसग्गा पाव-पओयण-निरयाण पासाओ पडिमा जत्ता पिय ! सुणसु सब्भावं पुप्फवईइ दिटुंतं पुव्वभवासुहं कम्म 148 82 96 114 92 100 واوا 68 धणलुद्धजणा एत्थ धणलोहंधिया जीवा धण्णा ते चिअ संसारो धन्नो सो नायव्वो धम्मुवएसकारेहिं धम्मेण कुलपसूई धुत्तधणियसेट्टिणं 125 73 बंभणविउसस्स कहं बहूणि हि सहस्साणि बीजिन एव हि बीजं बुद्धिपहावओ देवो ___96 115 42 106 न गिहं न य भत्तारो न सा दिक्खा न सा भिक्खा 94 नरिंदमाहणाईणं 72 नंदस्स मणियारस्स 57 नाणस्स होइ भागी नायं नाउं भुवणमहियं 68 नायगं गुरुसीसाणं नियकुडुंबरक्खटुं नियगुणहाणिविहायग- 103 नियलाहं चरित्ताणं 95 भगवं ! जे तुह आणं भाविणी-कम्मरेहाणं भावेण कुम्मपुत्तो भावो भवुदहितरणी भूमीसरो स नंदउ भो भो पेच्छह देवा भो साहू देवो विय 106 xo मइसेहरमंतिस्स मउत्तं मउए भव्वं मरुदेवाए नायं पंचसु जिणकल्लाणेसु

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