Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 206
________________ श्लोकानामकारादिक्रमेण सूचिः कथा | पृष्ठ | श्लोकादि 181 श्लोकादि कथा | पृष्ठ / उ 103 110 77 उक्कोस दव्वत्थवं ___94 उढेसु सेट्ठि ! मा कुण उत्तमाणं पणामंतो उवएसो हि मुक्खाणं उवसमवरगुणभूसिय 80 1 100 132 109 83 एक्कच्चिय इत्थ वयं एवं जे भावणं भव्वा एवं वेहासण-गिद्धएसो जो तुह पासेण 105 145 587 अइलोहो न कायव्वो अओ अहंपि पञ्चूसे अट्ठ य मूढसहस्सा अणिच्चाई सरीराई अणुकंपापयाणेण अतिही चाववाई य अत्थ अणत्थं भावसु निच्चं 61 अत्थं अणेगदुक्खोहअपुत्तस्स गई नत्थि अभयं सुपत्तदाणं अम्हाणं सव्वाण वि अरई न हि कायव्वा अवइन्ना वाएसरि अवस्सं चिय भोत्तव्वं असारो एस संसारो अहवा जम्मो मरणेण 106 . ' आ आणाभंगो नरिंदाणं आसन्ने परमपए आहीरीवंचगस्सेह 57 40 73 58 160 60 86 101 125 147 57 6 94 कंडू जलोयरे सीसे कटेण लद्धकन्नं पि कणिट्ठभाउवुत्तंतं कयकरणा वि सकजं कासे सासे जरे दाहे किं तीए पढिआए कुम्मापुत्त चारित्तं कुम्मापुत्तसरिच्छो कुम्मापुत्ता अन्नो कूडसक्खी मुसावाई कोवो चंडालसमो कोहेण हि हारवियं 111 94 110 94 110 83 82 103 40 102 इक्कस्स कए नियजीवियस्स 88 इत्थीण ताव पढमं इह वाणी सिरिदेवी 108 176 इह सिवनरिंदस्स 8383 इहयं पिउस्स नेहं 31 खज्जतीए वि तहिं खमणंमि खामणंमि य 64 107 153

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