Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ |दुरुत्तरसयइमी सम्मत्तपढमलक्खण-उवसमभावे दमसाररिसिणो कहा - - - - - कोहेण हि हारवियं, उप्पजंतं च केवलं नाणं / दमसारेण य रिसिणा, उवसमजुत्तेण पुणलद्धं / / 1 / / इह जंबूदीवंमि भरहखित्तंमि कयंगला नाम नयरी आसि / तत्थ सीहरहो नाम राया, तस्स सुणंदा नाम महादेवी, तीए कुक्खिसंभवो दमसारो नाम पुत्तो, सो य बालत्तणमि बावत्तरिकलानिउणो मायपियरहिययाणंदजणगो अईव इट्ठो होसी / जोव्वणंमि य पिउणा विसिट्ठरायकन्नापाणिग्गहणं कराविऊणं जुवरायपयंमि ठविओ सो सुहेण कालं जवित्था / एगया तन्नयससन्न पएसे भयवं सिरिमहावीरसामी समोसरिओ / देवेहिं समोसरणं विहियं परिसा मिलिया, तइया सिंहरहराया वि सपुत्तो सपरियणो महिड्डीए वंदणटुं समागओ / छत्तचामराइरायचिन्हाई दूरे विमोत्तूणं परमेसरं तिपयाहिणं काऊणं परमभत्तीए वंदिऊणं समुइयट्ठाणंमि उवविठ्ठो / पहुणा नरसुरपरिसाए धम्मुवएसो दिनो, परिसा पडिगया, तओ दमसारकुमारो भगवंतं नमंसित्ता विणएण वयासी-'सामि ! सिरिमंतेण वुत्तो सव्वविरइधम्मो मज्झ रुइओ, अओ हं देवाणुप्पियाणं समीवंमि पव्वजं गिहिस्सं / नवरं मायपियरे आपुच्छामि / तया सामी वयासी-जहासुहं देवाणुप्पिअ ! मा पडिबंधं कुणेहि' / तओ कुमारो गेहं आगंतूणं मायपियराणं पुरओ वयासी-'भो मायपियरा ! अज्ज मए सामिणो वंदिआ, तेहिं कहिओ धम्मो मम रुइओ, अह तुम्हेहिं अणुण्णाओ अहं संजमं घेत्तुं इच्छामि' / तया अम्मापियरा अकहिंसु-'पुत्त ! तुं अज्ज वि बालो सि अभुत्तभोगकम्मो सि, संजममग्गो उ अइदुक्करो तिक्खखग्गधारोवरि चंकमणसरिसो विज्जइ / सो य अइसुउमालसरीरेण भवया संपयं पालिउं असक्कणिज्जो, तम्हा संसारियसुहाई भोत्तूणं परिणयवयो होऊणं पच्छा चारित्तगहणं कुज त्ति / एयं सोच्चा पुणो दमसारो पाह-'भो अम्मापियरा ! तुम्हेहिं संजमस्स दुक्करया दंसिया, तहिं न संदेहो, परंतु सा दुक्करया कायरनराणं अत्थि / धीरपुरिसाणं तु किमवि दुक्करं नेव / वुत्तं च ता तुंगो मेरुगिरी, मयरहरो ताव होइ दुत्तारो / ता विसमा कजगई, जाव न धीरा पवखंति / / 2 / / तह अतित्तेण अणंतसो भुत्तपुव्वेसुं निस्सारेसु संसारियसुहेसुं पि मे इच्छा नत्थि, तम्हा तुम्हे अविलंबेण मम आणं पयच्छेह, जओ हं संजमग्गहणं कुणेमु' / इच्चेवं दमसारस्स संजमे निच्छयं वियाणिऊणं अम्मापियरा तस्स निक्कमणमहूसवं अकासी / तइआ दमसारकुमारो पवड्डमाणपरिणामेहिं सिरिवीरपासंमि संजमं गिण्हित्था / मायपियरा य सपरिवारा सट्ठाणं गच्छित्था / तओ दमसाररिसी छट्ठट्ठमदसमाइविविहतवाराहणासत्तो एगया वीरसमीवंमि एवं अभिग्गहं गिण्हित्था - -'सामि ! अहं जावज्जीवं मासखवणतवं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्सामि' त्ति / पहुणा वुत्तं–'जहासुहं देवाणुप्पिय' --

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