Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 161
________________ 132 पाइअविनाणकहा-२ होज्जा / अह जहा जहा सो तं सुत्तं परावट्टिउं पवुत्तो तहा तहा पमुइया सव्वे वि लोगा नयरमज्झमि समागया / राया वि सहरिसो सट्ठाणं पत्तो, भयवत्ता सव्वा वि विणाट्ठा, सव्वलोगो सुट्ठिओ संजाओ / तओ तवसोसियसरीरो परमोवसमरसनिमग्गो दमसारो रिसी तया आहारं अघेत्तूणं पच्छा वलिओ सविणयं पहुणो समीवे समागओ / _तइया पहुणा वुत्तं-भो दमसार ! अज्ज चंपाए नयरीए भिक्खटुं गच्छमाणस्स तुव मिच्छादिट्ठिवयणाओ कोहो समुप्पन्नो इच्चाई जाव उवसंतकोवो इहयं संपत्तो, एसो अट्ठो सञ्चो ? सो वयासी-तहेव त्ति / पुणो पहुवीरेण वुत्तं-'भो दमसार ! जो अम्हाणं समणो वा समणी वा कसायं उव्वहेइ सो दीहसंसारं विहेइ, जो उ उवसमं विहेइं, तस्स संसारो अप्पो हवइ' / एयं वयणं सोच्चा दमसारो मुणी वयासी-भयवं ! मम उवसमसारं पायच्छित्तं देहि / तइया पहुणा तवपडिपत्तिरूवं पायच्छित्तं दिण्णं / तओ दमसारो मुणी संजमेण तवसा य अप्पाणं भाविंत्तो विहरित्था / तओ तस्स साहुणो पमायजणिअं दोसं निंदमाणस्स गरिहमाणस्स य सुहज्झवसाएण सत्तमे दिवसे केवलं नाणं समुप्पन्नं / देवेहिं तस्स महिमा विहिओ, तओ दमसाररिसी बहवे जणे पडिबोहिऊणं दुवालस वरिसाइं जाव केवलपज्जायं पालिऊणं पज्जंते संलेहणं किच्चा सिद्धिपयं पत्तो / उवएसो उवसमवरगुणभूसिय-दमसाररिसिस्स बोहगं वुत्तं / सोचा भविया तुम्हे, सइ उवसमधारगा होह / / 4 / / उवसमगुणंमि दमसारसाहुणो दुरुत्तरसययमी कहा समत्ता / / 102 / / * -अप्पप्पबोहाओ (आत्मप्रबोधात्) 103 तिउत्तरसययमी अप्पं पि निमित्तं पप्प कोवकारगविउसमाहणस्स कहा कोवो चंडालसमो, न विहेयव्बो सुहेसिणा केण / सप्पियविउसस्सेहं, दिटुंतो बोहणट्ठाए / / 1 / / वाणारसीनयरीए गंगानईए तीरंमि एगो विउसमहासओ रायमाणणीओ पइदिणं सिणाणटुं आगच्छेइ / तहिं एगया समीवत्थिया चंडालजुवई वि सिणाणटुं आगंतूणं सिणाणं किच्चा नियइट्ठदेवमुत्तिं ण्हवेइ पूएइ य / एवं दतॄणं रायपंडिअस्स मुहं मिलाणं संजायं, 'किं कायव्वं एत्थ मए' त्ति विमूढो होत्था / सा चंडालजुवई एवं पइदिणं तत्थ आगच्छेइ /

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