Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 174
________________ संजमविराहणपसंगे देहविसज्जणं अणुण्णायं इह मुणिवरदुगस्स कहा-१०५ 145 एत्तो दुक्करतवचरणाओ विरमसु, हे सुहय ! जत्थ दिणे तुज्झ दिक्खावत्ता निसामिया, तत्थ ममं वज्जवडणाऽइरित्तं दुक्खं जायं, तुह वियोगे जीवियं अज्ज चयामि कल्लं वा चयामि, नवरं एत्तियदिवहे वि तुह दंसणाऽऽसाए ठियं, इण्डिं च तए सद्धिं जीवयं मरणं वा नत्थि संदेहो, ता पाणनाह ! जं तुज्झ रोयए, तं समायरसु' / / एवं तीए भणिए सो साहू गुरुणो वयणं सरिऊणं पुव्वुवइटुं च अणुवसमं धम्मपञ्चूहं अहुणा उवट्ठियं ति वियाणित्ता मोक्खत्थबद्धलक्खो बाढं नियजीवियव्वनिरवेक्खो तं भणेइ-'भो भद्दे ! एक्कं खणं तुमं गिहबाहिं ठाहि, जाव अहं किंपि नियकिच्चं करेमि, तदुत्तरं जं तुव हियं आयंतियसुहं च तं आयरिस्सामि / अह सा पहिट्ठवयणा तह त्ति पडिसुणिय निबिडकवडुक्कडायारा गिहकवाडाइं दाऊणं बाहिं संठिया / साहू वि कयाणसणो परंमि धम्मझाणंमि वदि॒तो वेहाणसेण विहिणा मरिउं अच्चुयसुरो जाओ / तया पुरंमि वत्ता जाया-'इमीए साहू हओ' त्ति, तओ पिउणा हत्थं निब्भच्छिऊणं सा सोमसिरी नियगिहाओ निच्छूढा मग्गे ञ्चिय पसवदोसाओ निहणं गया / विजयसिरी वि अञ्चंतसिणेहवसाओ एगत्था तावसाणं आसमंमि पव्वजं घेत्तूणं कंदमूलाई भुंजंती तहिं संठिया / _ अवरंमि अवसरंमि पुव्वोइयमुणिवरस्स लहुभाया सो सोमदत्तनामो मुणिवरो विहरंतो तत्थ संपत्तो तिक्खऽग्गकीलएणं चलणंमि विद्धो सो भमिउं अक्खमो तहिं एगपएसंमि ठिओ / तइआ कहवि विजयसिरीए नाओ / मयणानलदज्झमाणहिययाए विविहेहिं पयारेहिं सो खोहिउं पारद्धो, एवं पइक्खणं चिय तीए पावाए खोभिजंतस्स सुमरियगुरुवयणस्स तझ्या गंतुं अचयमाणस्स कहं स-जीवियं उज्झामि'त्ति चिंतमाणस्स तस्स देसंमि दोण्हं निवाणं बद्धवेराणं तत्थ तक्खणंमि महंतं जुद्धं जायं / निवाडियाणेगसुहड-करि-तुरयं पवहंतरुहिरपवाहं दंसणमेत्ते वि भयजणगं परपक्ख-सपक्खखयं एयारिसमहासंगामं दळूणं पडिनियत्तेसु निवेसु गिद्ध-भल्लुकपमुहेहिं मडएसुखज्जमाणेसुं साहू परिचिंतेइ-'मरणकिञ्चमि अवरो उवाओ नत्थि, तो रणंगणंमि ठाऊणं गिद्धपट्ठ-मरणं पवज्जामि / एवं विणिच्छिऊणं स महप्पा कहं पि तीए पावाए कंदफलाइनिमित्तं गयाए कयसव्वकायव्वो सणियं सणियं तेहिं मडयाणं मज्झयारंमि गंतूणं निज्जीवो इव पडिओ, अह दुट्ठसत्तेहिं खद्धो अञ्चंतसमाहीए मरिऊणं सो जयंतंमि विमाणंमि अणुत्तरो सुरो जाओ / एए दुण्णि वि समणवरा तओ माणुसभवं पाविऊणं मोक्खं पाविहिरे / वुत्तं च एवं वेहाणस-गिद्ध-पट्ठमरणाइ कारणवसेणं / नूणमणुण्णायाई, जिणेहि तइलोक्कमहिएहिं / / 3 / / उवएसोदुण्हं समणवराणं, समाहिवरदंसगं हि सञ्चरियं / सोचा भविया ! तुम्हे, तहा वयाऽऽराहगा होह / / 4 / / संजमविराहणप्पसंगे मुणिवरदुगस्स पंचाहियसययमी कहा समत्ता / / 105 / / -संवेगरंगसालाओ 1. आत्यन्तिकसुखम् / / 2. वैहायसेन गणे siसोनiजी भरत / / 3. -शृगाल- / / 4. भक्षितः / / 210

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