Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 150 पाइअविनाणकहा-२ दुक्खदायगो अत्थि' / एवं मुणिणा भणिए सयंभुदत्तो परेण विणएण पव्वजं पडिवज्जइ, कुणेइ य विचित्तं तवोकम्मं, गामाऽऽगरनगर-संकुलं वसुहं गुरुणा सद्धिं विहरेइ / एवं सो महासत्तो दुस्सह-परीसहचमु अहियासिंतो चिरं कालं विहरित्ता नाणदंसणसमग्गो थोवाउयं च नच्चा गुरुआणाए भत्तपरिन्नं पवजंतो सो गुरुणा पन्नविओ-'अहो महाभाग ! पजंतकालियं सविसेसाऽऽराहणविहाणं पउरपुन्नभरेहिं लब्भइ, तो सयणे उवहिंमि कुले गच्छे नियदेहे वि य मा पडिबंधं काहिसि, जओ एसो अणत्थाणं मूलं अस्थि / तहिं सयंभुदत्तो ‘इच्छामो अणुसटुिं' ति जंपिऊणं गुरुगिराए बद्धरई उत्तमढं अणसणं पडिवन्नो / तइया तप्पुन्नपगरिसेणं आवज्जिओ पुरजणो अणसणपडिन्नं तं नच्चा पूएइ सक्कारेइ य / ___अह सो पुव्वविउत्तो सुगुत्तनामो तस्स लहुभाया परिभममाणो तंमि पएसंमि समागओ / तओ एगदिसाऽभिमुहं मुणिवंदणटुं पुरीलोगं गच्छंतं पलोइत्ता अणेण पुच्छियं-'किं एसो समग्गजणो एत्थ वच्चइ' ? एगेण नरेण तस्स साहियं-जह एत्थ मुणिवसहो कयभत्तपरिञ्चागो पञ्चक्खो सद्धम्ममहानिहिव्व निवसेइ, तित्थं पिव तं वंदिउं एस पउरजणो जायइ, एवं सोच्चा सुगुत्तो वि कोऊहलेण लोगेण सद्धिं सयंभुदत्तं समणं दटुं तं देसं अणुपत्तो / - अह मुणिणो रूवं पेच्छिऊणं संजायपञ्चभिन्नाणो' पमुक्कदीहपोक्कारं रोइत्ता भणिउं आढत्तो-'हे भाय ! सयणवच्छल ! कहं वा कूडसमणेहि छलिओ सि ?, जं अञ्चंतकिसियंगो तुम एरिसिं अवत्थं पत्तो / अज्ज वि सिग्घं इमं पासंडं छड्डेहि, नियदेसं पयामो, तुज्झ विओगेणं अचिरेण मम हिययं फुडं फुट्टेड' / तेण इय जंपियंमि सयंभुदत्तो वि ईसि-पडिबंधाओ तं वाहरिऊणं समग्गमवि पुव्ववुत्तंतं पुच्छेइ / सो वि य दुक्खत्तो सोगखलिरऽक्खराए वाणीए चिलायधाडीविहडणापामोक्ख-निययवुत्तंतं साहेइ / अह कलुणवयणसवणेण उब्भवंतपडिबंध-कलुसियज्झाणो सव्वट्ठसिद्धपाओग्गसंजमविसुद्धट्ठाणाई पि खंडिऊणं तदुवरिं सिणेहदोसेणं मरिऊणं सोहम्मदेवलोगंमि मज्झिमाउदेवत्तणंम्मि सयंभुदत्तो समणो समुप्पन्नो / एवं संजमसेणिविसुद्धीए जे जे जोगा तप्पडिपंथिणो हवंति, ते ते वज्जित्ता आराहणाभिलासीहिं सइ संजमंमि अपमत्तभावो धारियव्वो त्ति / उवएसो थोवेण भेहदोसेण, कयाणसणसाहुणो / गई नया सुहेसीहिं, नेहो हेयो सुसंजमे / / 4 / / संजमसेणिविसुद्धीए सयंभुदत्तसाहुणो छउत्तरसयइमी कहा समत्ता / / 106 / / -संवेगरंगसालाए। 1. चतुर्विधाहारत्यागरूपमनशनम् / / 2. 'एष मम बन्धुः' इति ज्ञात्वा / /

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