Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 148 पाइअविनाणकहा-२ एवं परिभावंतो जाव वच्छच्छायं अणुसरेइ ताव तरुणो हेट्ठम्मि ठियं महासत्तं चारणसमणं विचित्तनयभंगसंगदुब्विगमं सुत्तं परियत्तंतं पउमासणबंधधीरं उवरुद्धमणपसरं पेच्छइ / तयणु सो विसमविसोरगविसविहुरियस्स मम एत्थ पत्थावे 'भयवं ! सरणं तुम' ति जंपिय विचेयणो पडियो / अह मुणिवसहो तं विस-वस-निन्नट्ठचेयणं पेच्छिऊणं करुणाए परिचिंतेइ-इयाणिं किं काउं जुज्जइ ? / जओ वुत्तं पावपओयणनिरयाण, नो गिहत्थाण ताव उवयारे / वट्टिउमुचियं साहूण, सव्वभूयप्पभूयाणं / / 3 / / सव्वभूयप्पभूयाणं साहूणं पावपयोयणनिरयाणं गिहत्थाणं उवयारम्मि वट्टिउं नो उचियं / जम्हा ताणं उवयारम्मि वट्टमाणे गिहिसंगदोसेण निरवज्जवित्तिणो वि हु साहवो तव्विहपावट्ठाणाणं कारणं भवंति / जइ पुणो उवयरिया ते सव्वसंगं मोत्तूणं अचिरेणं पव्वजं पडिवज्जिऊणं सद्धम्मकज्जेसुं जयंति तया तक्कया कम्मनिज्जरा वि होज्जा / इय चिंतमाणस्स समणस्स अनिमित्तं चिय सहसा दाहिणं नयणं विप्फुरियं / / तओ तदुवयारं आभोगिऊणं तस्स चरणोवरिम्मि वियाररहियं सुहुमं भुयगदंसं ठूणं मुणिवसहो परिभावइ नूणं इमो जीविस्सइ, जेण सप्पदंसठाणं अविरुद्धं / सत्थम्मि सिरपमुहाणि ठाणाणि विरुद्धाणि वुत्ताणि। तहाहि-सीसम्मि लिंगम्मि चिबुए कंठम्मि संखेसु गुदे थणम्मि ओट्ठम्मि वच्छयलम्मि भुमयासू नाभीए नासाउडम्मि करचरणतलम्मि खंधे कक्खासुं इक्खणंमि निडालम्मि केसंतसंधिदेसेसुं च सप्पदट्ठो जमगिहम्मि जाएइ / तहा य पंचमी-अट्ठमी-छट्ठी-नवमी-चउद्दसीतिहीसुं अहिदट्ठो पक्खंते वि विणस्सइ, अज्जं च तिहि हि विरुद्धा न / नक्खत्तेसुं पि मधा विसाहा मूलं असिलेसा रोहिणी अद्दा कित्तिय त्ति विरुद्धाइं नक्खत्ताई, अज्ज इह मुहुत्तम्मि तं पि विरुद्धं नक्खत्तं न वट्टेइ / अन्नं च पुव्वमुणिणो रिट्ठ पि भणंति-भुयगदट्ठस्स मणुयस्स कंपो, लालामुयणं, जिंभा', नयणाऽरुणत्तणं, मुच्छा, सरीरभंगो, कवोलसामत्तणं पहाहाणी, हिक्का सरीरसीयत्तणं च अचिरेण मरणाय हवेइ / ततो पडियारो कीरइ / जओ 'जिणधम्मो दयापहाणो अत्थि' एवं परिभाविऊणं मुणिवसहो झाणनिमियथिरनयणो विसाऽवहारगविसेससुत्तं अणुसुमरिउं पवत्तो / अह जाव सरय-ससहर निब्भर-पसरंत-पहा-पहासिरं अमयकुल्लाऽणुकारिणिं अक्खरसेणिं उल्लवेइ, ताव दिवसयर-पहा-भरऽब्भाहयं तिमिरं पिव महाऽहिविसं नटुं / सो वि सुत्तविबुद्धोव्व पडुदेहो उट्ठिओ / तओ एसो पवरसाहू ‘मम जीवियदाय' त्ति जायपडिबंधो सबहुमाणं तं समणं नमिऊणं भणिउं आढत्तो-'भयवं ! भमंतभीसणसावयकुलसंकुलाए अडवीए मम पुण्णेणं तुम्हे इहं निवासो जाओ त्ति मण्णेमि / नाह ! जइ तुमं इहं न होतो सि, तो कहं अन्नहा महाविस-विसहर-विस-हरियचेयणस्स इह जीवियव्वं होज्जा ? कत्थ मरुमंडलो ? कत्थ य महाफलसमिद्धो कप्परुक्खो ? कत्थ अधणस्स गेहं ? कत्थ य तत्थेव रयणनिही ? कत्थ अञ्चंतदुहिओ अहं ? कत्थ य तुमं अणप्पमाहप्पवंतो? अहह ! विहिविलसियाणं जयंमि को परमत्थं मुणेइ ?, भयवं ! एवंविहोवयारिस्स तुज्झ अधन्नस्स महं केण केण व कएण रिणमोक्खो जाएजा ? 1. चिबुके / / 2. नयनसमीपभागेषु / / 3. ध्रुवोः / / 4. रिष्टं शुभाशुभनिमित्तम् / / 5. जृम्भी - 12 // 4 / / 6. हेडकी / /

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