Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ रज्जलोहेण पुत्ताणं पि विडंबणाविहायगस्स कणयकेउनरिंदस्स कहा-९९ 121 अह मंतिगेहमि वुढेि पावंतस्स रायकुमारस्स कणयज्झउ त्ति नामं दिण्णं, कमेण सो जोव्वणं पत्तो / तयम्मि समए कणयकेउनरिंदो परलोगं गओ / सव्वे वि सामंतपमुहा चिंताउला जाया / एयं रज्जं कास समप्पिस्सामु त्ति ?, तयवसरे मंतिणा तेयलिपुत्तेण सव्वंपि पउमावईदेवीसरूवं निरूविअं / तइया कणयज्झयं रायनंदणं णचा सव्वे वि पहिता संजाया / सव्वेहिं पि महयाडंबरेण सो कणयज्झयकमारो रजम्मि ठविओ। कणयज्झयनरिंदेण मंतिं महुवगारिणं वियाणिऊणं अईव तस्स सम्माणं दिण्णं / महया आणंण रज्जं पालेमाणस्स तस्स कियंतो कालो गओ / एगया मंतिणो गेहंमि पोट्टिला पिया पुव्वं पाणेहिंतो वि अहिगा वि केणई कम्मदोसेणं अणिट्ठा जाया / भिन्नसेज्जा कया / पोट्टिलाए मणंसि एयं महादुक्खं उप्पन्नं / वुत्तं च आणाभंगो नरिंदाणं, गुरूणं माणमद्दणं / भिन्नसेजा य नारीणं, असत्थवहमुञ्चइ / / 2 / / पियावमाणदुहियाए तीए विसेसेण दाणाइधम्मकिञ्चं पारद्धं / एगया पोट्टिलाघरंमि एगा सुब्बया साहुणी आहारटुं समागया / संमुहं गंतूणं सुद्धाहारेणं पडिलाहिऊणं पंजलिं काऊणं पोट्टिलाए पुटुं-भो भगवइ ! तारिसं किं पि विहेहि, जेण मम पिओ वसीहोज्जा, परुवयारो च्चिय परमं पुण्णं, जओ वुत्तं दो पुरिसे धरइ धरा, अहवा दोहिंपि धारिया धरणी / उवयारे जस्स मई, उवयारो जं न वीसरइ / / 3 / / इअ पोट्टिलावयणं सुच्चा सुव्वया साहुणी साहेइ-तुमए किं वुत्तं ?, एयारिसी पउत्ती उत्तममहिलाणं न जुत्ता, जओ मंततंताईहिं भत्तुणो वसीकरणं महादोसाय होज्जा / अहवा अम्हाणं पि गहियसव्वविरईणं महव्वइणीणं एयं 'कम्मणाइपयोगकरणं न समुइयं / तुमं जं भोगटुं वसीकरणं करावेसि, ते भोगा संसारिजीवाण दुक्खहेयवो, किंपागफलसरिसा विसया पारंभरमणिज्जा, परिणामे अइदारुणा निरयाइदुग्गइदुहदायगा, दीहकालं सेविया वि विसया न तित्तिजणगा, अओ एवं विसयाभिलासं चइत्ता जिणवरवुत्तं सुद्धधम्मं समायराहि / जेण सव्वट्ठसिद्धि होज्जा / ____ एवं सुव्वयासाहुणीमुहाओ उवएसं सोचा तीए तव्वयणं पडिवणं / भत्तुस्स अणुण्णं घेत्तूणं चारित्तं गहियं / पिएण विमुत्तकोहेण वुत्तं-धन्ना तुमं, जेण चारित्तं गहियं / अओ देवीभूयाए तुमए मज्झ पडिबोहणटुं अवस्सं समागंतव्वं / सा वि तं पडिवज्जित्ता भूमीए विहरित्था / चिरकालं निरइयारं चरणं पालिऊणं सा देवत्तणेण उप्पन्ना / ओहिनाणेण पुव्वभवभत्तारं अवलोइऊणं पडिबोहिउं सो देवो समागओ / बहूहि पि उवएसेहिं सो तेयलिपुत्तो पडिबोहं न पत्तो, तओ देवेण चिंतियं-रज्जमोहेण एसो पडिबोहं न पावेइ, अओ देवेण रण्णो चित्तविवज्जाओ कओ / मंतिम्मि सहाए समागए परंमुही होइऊणं ठिओ राया दंसणं न देइ / तेयलिपुत्तेणं चिंतियं-राया मज्झ उवरिं अईव रुट्ठो / दुढेण केण वि किमवि मईयं छिदं कहियं विलोइज्जइ / अओ न याणेमि किं एसो काही ? केण वा मरणेण मं हणिस्सइ ?, अप्पघायं काऊणं मरणं चिय वरं' ति चिंतिऊणं तेण कंठंमि पासो दिण्णो / देवप्पहावेण सो तुट्टिओ, पुणो विसं भक्खियं, तंपि सुहा विव जायं, पुणो खग्गेण मत्थयं छिंदिउं पारद्धं, तइया देवेण खग्गधारा निबद्धा, पुणो अग्गिमॉमि पविट्ठो, अग्गी वि जलरूवेण परिणओ / एवं सव्वे वि मरणप्पयासा देवेण निप्पलीकया / __पच्छा पयडीहोऊणं पोट्टिला देवी भासित्था-एयं सव्वं मए कयं, किमढे अप्पघायं कुणेसि ?, चरित्तं गिण्हेहि / तं सोच्चा तेयलिपुत्तपहाणेण चरित्तं गहियं / राया वि समागंतूणं चरणेसुं पडिऊणं नियं अवराह 1. कार्मणादिप्रयोगः / / 2. - विपर्यासः चित्तभ्रमः / /

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