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(घ) राघव को व्यर्थ ही चरित्रभ्रष्ट समझ कर रतनसेन ने
देश से निकाल दिया। (ड, समुद्र के कारण मिहल से पदमिनी स्त्री की प्राप्ति
मे विफल होकर, अलाउद्दीन ने राघव चैतन्य के कहने __ पर चित्तौड़ पर चढ़ाई की। (च) राजा ने अलाउद्दीन को पद्मिनी दिखलाई। (छ) अलाउद्दीन ने द्वार पर राजा को पकड़ा। (ज) मार से घबरा कर राजा ने पद्मावती को देने का
सदेश चित्तौड़ भेजा। (झ) मत्री पद्मावती को देने के लिए तैयार हुए। किन्तु
गोरा और वादल ने युद्ध की सलाह दी बाकी कथा प्रायः वैसी ही है जैसी गोरा चादल कवित्त की और
मम्भवतः उसीके आधार पर रचित है। इसके बाद सम्बत् १७०५-१७८७ में रचित लब्धोदय की पद्मिनी चरित चौपई भी इस संग्रह मे प्रकाशित है। कुछ परिवर्तन द्रष्टव्य है :(क) नागमती के स्थान पर इसमे रतनसेन की पहली रानी
का नाम प्रभावती है। (ख) सिंहल-प्रयाण की कथा कुछ और अतिरंजित है। (ग) पदमिनी के देने का विचार वही है, किन्तु मुख्यतः १-देखें पृ० १-१०८