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कथा के लिये पद्मावत का ऋणी नहीं हो सकता। अलाउद्दीन के देवगिरि पर आक्रमण के समय जव समरसिंह वहाँ से निकल गया और अलाउद्दीन को यह आशंका हुई कि यादवरान रामदेव की पुत्री भी वहाँ से निकल गई होगी तो उसने राघव चैतन्य से कहा
मेरौ कहिउ न मानइ राउ। बेटी देई न छाडइ ठाऊं ॥४२३।। सेवा करइ न कुतवा पढई। अहि निसि जूझि वरावर चढई। धमि सौरसी देसतर गयो। अति धोखंउ मेरे जीय भयो ॥४२४|| रनथभौर देवल लगि गयो । मेरो काज न एकौ भयो । इ वोलइ ढीली का धनी । मइ चीत्तौर सुनी पदमिनी ॥४५५।। वंध्यौ रतनसेन मइ जाइ। लडगो वादिल ताहि छंडाइ। जो अवके न छिताई लेऊ।
तो यह सीसु देवगिरि देऊ ॥४५६।। "राजा (रामदेव) मेरा कहना नहीं मानता। वह न वेटी देता है और न स्थान छोड़ता है। वह न सेवा करता है, और न (आधीनता सूचक) खुत्वा पढता है। ममरसिंह निकल