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साथ था। वे बार बार 'हुदहुद हुदहुद' चिल्ला रहे थे। किन्तु मैं अमीर खुसरो] वापस न लौटा, क्योंकि मुझे डर था कि शायद सुल्तान पूछ बैठे, 'मुझे हुदहुद क्यों नहीं दिखाई पड़ता ? क्या वह अनुपस्थित है और यदि वह ठीक कैफियत मागे तो मैं क्या वहाना करूँगा।" उस समय वर्षाऋतु थी। "सुल्तान के क्रोध की विजली से आहत होकर राय एडी से चोटी तक जल उठा और पत्थर के द्वार से इस तरह उछल निकला जैसे आग पत्थर से निकलती है। पानी मे पड़ कर वह शाही शामियाने की तरफ दौड़ा। इस तरह उसने तलवार की विजली से अपने को बचा लिया। हिन्दू कहते है कि विजली पीतल के वर्तन पर अवश्य गिरती है और राय का मुंह भय के मारे पीतल सा पीला पड़ गया था। यह निश्चित है .
कि वह तलवार और पाणों की विजली से सुरक्षित न रहत्ता, ___ यदि वह शाही शामियाने के दरवाजे तक न पहुंचता।"
इसी अवतरण पर टिप्पण करते हुए प्रोफेसर हबीब ने लिखा था, "हुदहुद वह पक्षी है जो सुलेमान के पास सेबा की रानी बलकिस के समाचार लाता है। यह स्पष्ट है कि सुलेमान के सेवा आदि की तर्फ संकेत के लिये पद्मिनी उत्तरदायी है। " चित्तोड की बलकिस तो उस समय भस्म हो चुकी थी। फिर उम युग के सुलेमान, अलाउद्दीन को उसके समाचार कौन देता? डा० कानूनगो ऊपर दिए हुए अवतरण में पद्मिनी की १~-वही पृष्ठ ३७१, टिप्पणी १