Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 7
________________ विषयानुक्रमणिका ক্লিখ पृष्ठ-संस्था १--धर्म-समुद्देश १से ४२ पृष्ठ सक ___ मलारण, धर्मका : स्य क धर्मका विस्तृत विवेचन), अधर्म (मिम्पत्विप्रति) का दुष्परिणाम, धर्मप्राप्ति के उपाय, भागम-माहात्म्य, चसकी सस्यता, चंचमचित्त तथा व्य-विमुखकी हानि, पान-दान, तप, संयम एवं धर्म, विद्या व धनस पयसे लाभ तथा धार्मिक अनुत्साहसे हानि मानसियोंके मनोरथ, धर्म-पराङ्मुखता, स्वतः धार्मिक प्रवृत्ति व उसमें विघ्न, पापप्रवृत्तिको मुलभवा, पाप-निषेध, ठगोंके कार्य, कुसंग, परस्त्री-सेवन व पापका दुष्परिणाम एवं मकाम पुगपार्थको छोड़कर केवल धर्म-सेवन करनेवालेकी भालोचना, विवेकीका कप, अन्यायका दुष्परिणाम, पूर्वजन्ममें किये हुए धर्म-अधर्मेका प्रवक्ष व अकाट्य युक्तियों द्वारा समर्थन तथा भाग्य । २ अर्थ-समुद्देश ४३-४७ धनका लमण, धनिक होने का सपाय तथा धनके बिनाशक कारण। ३ काम-समुद्देश ४८-५७ . कामका लक्षण, सुख प्राप्तिका उपाय, केवल एक पुरुषाके सेवमसे हानि, विविध कष्ट महन पूर्वक धन संचयसे हानि सम्पतिकी मार्थकता, इन्द्रियोंको डाइमें न करनेसे पनि, इन्द्रियजयका स्वरूप व उपाय, कामी, स्त्री भासत पुरुष, नीति-विरुद्ध कामके दोष, एफ कालीन धर्म-मावि तीनों पुरुषार्थोमसे जिसका सेवन लाभदायक एवं जिस समय भर्षपुरुषार्थ मुरूप है। ४ परिषड्वर्ग समद्देश ५७-६२ 'अन्तरङ्ग शत्रुनों (काम-मादि) के नाम लवण-मादि ५ विद्यार-समुददेश ६२-१.. राजाका लक्षण, कतैन्य, राज्यका स्वरूप, वर्ण-भाभमके भेद, सम्य, उपायक, ठिक तथा सुपद प्रामवारियोंका स्वरूप सच्चा पुत्र, पुत्र-शून्यकी पति, शास्त्रका अध्ययन, ईश्वर भक्ति और लोक सेवा न करनेसे हानि, नैष्ठिक ब्राह्मचारीका माहाल्प, गृहस्थ व उसके निस्व. नैमित्तिक अनुष्ठान, जैनेतर गृहस्थ, वानप्रस्थ और यतियों का स्वरूप व भेद, राज्यका मख, इसी श्रीवृद्धि के उपाय, विनय, राय-वतिके कारण, राजनैतिक शान और पराक्रमी राजा, बुद्धिमान, केवल पराक्रमका परिणाम, नैतिक मानके सद्भाव-असद्भावसे नाम-हानि, मूर्ख-दुध राजा तथा राज-पुत्रको राम अधिकार और हानि, तथा राज्यपदके योग्य पुरुषद्रव्य, गुणशून्य व अयोग्य पुरुषमं रास्यपदकी भयोग्यता, गुणाकृत पुरुष, बुद्धिक गुख-लसण, विद्यानांच स्वरूप, आन्वीक्षिकी-प्रादि राजविधाओंके भेद, उनके अध्ययनसे लाभ, 'मान्बोलिकी' में अन्य नीतिकारोकी मान्यता, उसकी समीक्षा (तभ्यनिर्णय), भान्वीक्षिको भादिका प्रयोजन, बनपा मान्यताएँ, जैन सिद्धान्तके अनुसार उनके लोक प्रचार पर ऐतिहासिक विमर्श ।

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