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जीवतत्वे पर्याप्तिस्वरूपवर्णनम्.
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अने लब्धि पर्याप्त, तथा करण अपर्याप्त अने करणपर्याप्त जीवोनो संबंध घणी वार आवतो होवाथी अत्रे पर्याप्तिना प्रसंगमां ते चारे जीवोनुं किंचित् स्वरुप अर्थ मात्रथी कहेवाय छे
जे जीव स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण कर्या विनाज मरण पामे ते लब्धिअपर्याप्त कहेवाय. जेमके एकेन्द्रिय जीवने स्वयोग्य पर्या लिओ ४ होय छे, तो ते चार पर्याप्तिओ पूर्ण न करे अने त्रण पूof करीने ज ( चालती चोथी पर्याप्तिमां ) मरण पामी जाय तेवा एकेन्द्रियजीवी लब्धि अपर्याप्त एकेन्द्रिय कहेवाय छे, अहिं लब्धि ते अपर्याप्तनामकर्मना उदय संबंधि जाणवी पुनः ए प्रमाणे विकलेन्द्रिय विगेरे स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण कर्याविना मरण पामे तो ओलब्धि अपर्याप्त विकलेन्द्रियादि कहेवाय. सर्व लब्धिअपर्याप्त जीवो ण पर्याप्तिओ पूर्ण करे छे ते आगळ कहेवाशे.
तथा जे जीव स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण करीनेज मरण पामे एवी योग्यतावाको जीव लब्धिपर्याप्त कहवाय. (अहिं लब्धि ते पर्याप्तनामकर्मना उदय संबंधि जाणवी.) जेमके जे एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य ४ पर्याप्तओ, अने जे विकलेन्द्रिय अने असंज्ञिपंचेन्द्रिय जीव स्वयोग्य ५ पर्याप्तओ पूर्ण करीनेज मरण पामेतो तेवा एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय-अने असंज्ञिपंचेन्द्रिय जीवो लब्धिपर्याप्त कहेवाय.
तथा जे जीवे स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण करी नथी परन्तु पूर्ण करशे ते जीव करणअपर्याप्त कहेवाय. जेमके स्वयोग्य चारे पर्या
वे पछी पूरी करशे एवा जीवे जो एक वा बे पर्याप्तिओ वापर्याप्त पूर्ण करीय अने शेष अधूरी होय तो ते करण अपर्याप्ता एकेन्द्रिय कहेवाय छे तेमज स्वयोग्य छए पर्याप्त पूर्ण करशे एवा मनुष्ये एक वे ऋण चार के पांच पर्याप्तिओज पूर्ण करी होय तो पण ते करणअपर्याप्त मनुष्य कहेवाय. करणअपर्याप्त प