________________
॥ अजीवतत्त्वे कालस्वरूपविवेचनम् ॥
(१११)
अर्थ साथे अविरोधि रहे. ४-५ परात्वाऽपरत्त्व पर्याय-जेना आश्रयथी द्रव्यमा पूर्वभावित्व अने पश्चाद्भावीनो व्यपदेश थाय ते परापरत्व पर्याय ३ प्रकारनी छ. ते आ प्रमाणे-धर्म अथवा ज्ञान “पर" ( श्रेष्ठ ) छे, ने अधर्म नथा अज्ञान "अपर"(हीन) छे ए व्यपदेश प्रशंसाकृत परापरत्व कहेवाय, १ तथा एकज दिशामां एकी वखते रहेल बे पदार्थमां जे पदार्थ दूर होय ते पर अने नजीक होय ते अपर, एवो जे व्यपदेश तेक्षेत्रकृत पराऽपरत्व कहेवाय.२तथा १६ वर्षनी स्थितिवाळा द्रव्यथी १००वर्षनी स्थितिवाळु द्रव्य पर(उत्कृष्ट), अने १००वर्षनी अपेक्षाए १६ वर्षनी स्थितिवाळु द्रव्य अपर, (जघन्य),एवो जे व्यपदेश, ते का. लकृत परापरत्व कहेवाय ३(अहिं बे पर्यायनो संबंध एकत्र कहेल छे.) प. प्रमाणे वर्तनादि ५ पर्यायो ते काळनोज उपकार छे. "वर्तना प. रिणामः क्रिया परत्वाऽपरत्वे च कालस्य'(इति तत्त्वा० अ०५ सू०). परन्तु परत्वापरत्वमा प्रशंसाकृत अने क्षेत्रकृत एबे भेद काळ द्रव्यना उपकारथी नथी, एम जाणवू "नदेवं प्रशंसाक्षेत्रकृते परत्वाऽपरत्वे वर्जयित्वा वर्तनादीनि कालकृतानि कालस्योपकार"[इतितत्वा०भा०]. __अथवा वर्तमान एक समय ते (ऋजुमूत्रनयनी अपेक्षाए) नैश्वयिक काळ कहेवाय, कारणके वर्तमान समय विद्यमान छे, अने भूतकाळ व्यतीत थाल होवाथी, भविष्य काळ आवेलो नहिं होवाथी बन्ने अविद्यमान है. माटे जे विद्यमान वर्तमान काळ ते नैश्रयिक काळ एम पण कही शकाय. काल लोकप्रकाशमां कह्यु छे के “वर्तमानः पुनर्वर्न-मानैकसमयात्मकः । असौ नैश्चयिकः सर्वोs. (यन्यस्त व्यावहारिकः ।।१॥" ए प्रमाणे निश्चयकाळनु स्वरूप कयु, व्यावहारिक कालन म्वरूप चाल प्रकरणनी १३ मी गाथानां विवेचनमां कहवाशे.