Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 400
________________ . . ॥मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ (३४३) तेने देखतां गवलीने दूध नहिं आपतो होय एम धारी ..ठपको आप्यो त्यारे गवलीए तेनी वृद्धावस्था जणावी, करकंडु राजाने एकदम भावना प्रगटी के शुं आटला उपायोथी पुष्ट करेली कायानी अन्ते आज दशा ! इत्यादि भावनाथी वैराग्य पामी स्वतः लोच करी देवे आपेलो मुनिवेष ग्रहण करी प्रत्येकबुद्ध एवा करकंडुराजर्षि पृथ्वीपर विहार करवा लाग्या अने अनुक्रमे मोक्षे गया ए प्रमाणे द्विमुख राजर्षिने इन्द्रध्वजनी कफोडी स्थिति देखोथी, अने श्रीनमि राजर्षिने पोतानी स्त्रीओनां घणां ककणोनो खडखडाट ( ग्लान अवस्थामां ) सहन नहिं थतां स्त्रीओए वधु कंकणो उतारी एकेक कंकण राखता अवाज नहिं थवोथी पोताना आत्माने मुख उपजतां वैराग्य पामी दीक्षा अंगीकार फरी मोक्षे गया. ए सर्व प्रत्येकबुद्धनां चरित्र विस्तरार्थीए श्री उत्तराध्ययनथी जाणवां, " तथा कंइपण बाहय निमित्तनी अपेक्षाविना वैराग्य पामी कपिलादिवत् मोक्षे गया ते स्वयंबुद्धसिद्ध. त्यां कपिलकेलिनु संक्षिप्त दृष्टान्त आ प्रमाणे-कौशम्दी नगरीमां जीतशत्रु राजाना काश्यप नामनो पुरोहितनो पुत्र कपिल नामे अभण होवाथी रा. जाए पुरोहितना मरणवाद काश्यपना पुत्रने पुरोहित पदवी नहिं आपतां बीजाने आपी तेथी कपिलनी माताए कपिलने घणो ठपको आपी श्रावस्ति नगरीमा काश्यपना मित्र इन्द्रदत्त ब्राह्मणने त्यां अभ्यास करवा मोफल्यो त्यां. कपिल एक श्रेष्टिने घेर निरन्तर जमी इन्द्रदत्त पासे अभ्यास करे छ, केटलेक दिवसे शेठने घेररहेली दासीसाथे कपिले प्रीति बांधी,परन्तु निर्धनपणाने लइने ते दासी दासोमहोत्सवना दिवसोमां शोकातुर थवाथी कपिले शोकनु कारण पूछवाथी दासीए निर्धनपणानुं कारण दर्शावी धन

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