Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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|| प्रक्षिप्तगाथापरिकरितं ॥
(आसायणवज्जणया, एएसिं तह य भक्तिवहुमाणो वणस्स य संजलणं, होड अणासायणा विणओ ॥ ४४ ) ६० (सामाइ आइचरणस्स, सहहाणं तब कारणं । संफासणा परूवण - मह पुरओ भव्वसत्ताणं ॥ ४५ ॥ ६१ ॥ (मणवयकाइअविणओ, आयरिआईण सम्यकालंपि । अकुसलमणाई रोहो, कुसलाण उदीरणं तह य ॥ ४६) ६२ ॥ (अन्भासत्थण छंदोणु--वत्तणं कयमुपडिकई । तह य कारिअमित्तकरणं, दुक्खत्तगवेसणा तह य ॥ ४७) ६३ (तह देसकाल जाणण, सध्वत्थेसुं तहाणुकूलत्तं । लोगोवयारविणओ, सत्तविहो होइ विष्णेओ ॥ ४८) ६४ ॥ (आयरिय उवज्झाए, थेरतवस्सीगिलाणसेहाण | साहम्मिअ कुलगणसं -घवेआवच्चं हवइ दसहा ||४९ ) ६५ || (आयरिउवज्झाये, तबस्सिसेहे गिलाणसाहसु । समणुन्न संघकुलगण -- वेयावच्चं हवइ दसहा ॥५०॥ ) ६६ ॥ ( वायणा पुच्छणा चेव, तहा य परिदृणा । अणु पेहा धम्मकहा, सज्झाओ होइ पंचहा ॥ ५१ ॥ ) ६७ ॥
(३५९)
( झाणं चव्विहं खलु, अहं रुदं तहेव धम्मं च । सुक्कं पुण पत्तेयं, चउच्विहं चैव नायव्वं ॥ ५२ ॥ )६८ ॥ ( पढमं अज्झाणं, बीजे रुहं इमे भवफलाई । तह धम्मं तुरिअं सुक्कं दो मुक्खहेऊई ॥ ५३ ॥ ६९ ॥ ( दव्वे गणदेहो वहि, अरिता सुद्धभत्तपाणाणं ॥ उसो भावे अह, कासाय भवकम्म उस्सग्गो ॥ ५४ ॥ ७० ॥ बारसविहं तवो नि - जरा य बंधो अ चउविगप्पो य । पय ठिइअणुभाग - प्पएसभेएहिं नायवो ॥१७॥ ७१ ॥
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