Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 408
________________ ॥ मोक्षतत्त्वपरिशिष्टवर्णनम् ॥ [३५१] . एक समये १०८ सिद्ध थयेला अल्प, तेथी पश्चानुपूर्वीए ५० मुधी सिद्ध थयेला अनन्तगुणा, त्यांची पुनः पश्चानुपूर्वीए २५ सुधी सिद्ध थयेला असंख्यगुणा, त्यांची पुनः पश्चानुपूर्वीए १ सुधी सिद्ध थयेला संख्यातगुणा ( अनुक्रमे एकेक हीन संख्यामां) जाणवा. मोक्षतत्त्वना भेदो गति-इंद्रिय-कायमार्गणामां __ क्या क्या लाभे ते स्वरूप.. नरकगतिमां०-पूर्व प्रज्ञापनीय भावे (चरमशरीरनी अपेक्षाये) नरकगतिमां मोक्षतचना एक पण भेद न होय कारणके नरकगतिमांथी कोइ जीव मोक्ष पामे नहि.. . तियचगतिमां०--नरकगतिवत् । देवगतिमां-नरकगतिवन मनुष्यगतिमां ९-पूर्वप्रज्ञापनीय भावे मनुष्यगतिमां मोक्षनाश्मेद होय; कारणके मनुष्यगतिमाथीज जीवो मोक्ष पामी शकेछे. एकेन्द्रियथी चतुरि० मां०-नरकगतिवत् पंचेन्द्रियमां ९--मनुष्यगतिवत् पृथ्व्यादि ५ काया--नरकगतिचत् त्रसकायमां ९-मनुष्यगतिवत्

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