Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 406
________________ || मोक्षतश्वपरिशिष्टवर्णनम् ॥ (३४९) ला असंख्यगुणा छे. ( अहिंथी दरेक अल्पबहुत्व सिध्ध थबेला जी - वो आश्रयि जाणवुं, पण सिध्ध थता जीवो आश्रयि नहि. ].. ऊर्ध्व लोकमां सिध्ध थयेला अल्प, तेयी अधोलोके असंख्य गुण, ने तेथी पण तिर्य लोके असंख्यगुण. समुद्रमां अल्प, द्वीपोमां असंख्यगुण, उत्सर्पिणीमां अल्प, तेथी अवस० मां विशेषाधिक, तेथी पण उत्स० अवस० रहित काळमां ( महावि० मां ) - असंख्य गुण. तिर्यंचगतिथी आवीने सिध्ध थयेला अल्प, तेथी मनुष्यगति मांथी नारक गतिमांथी - अने देवगतिमांथी आवीने सिध्ध थयेला अनुक्रमे संख्यगुण. नपुं० लिंगे अल्प, तेथी स्त्रीलिंगे संख्यातगुण, ने तेथी पण पुरुष लिंगे सिध्धं थयेला संख्यातगुणा, गृहस्यसिध्ध अल्प, तेथी अन्यलिंग सिध्ध संख्यातगुणा, अने तेथी स्वलिंगसिध्ध संख्यातगुणा, अतीर्थसिद्ध अल्प, तेथी तीर्थसिध्ध असंख्यगुणा, पांच चारित्र स्पर्शी सिध्ध अल्प, सामायिक वर्जचारचारित्र स्पर्शी सिध्ध संख्यात गुणा, तेथी परिहा० वर्जचारचारित्रस्पर्शीसिद्ध संख्यात ने विद्याधरो जे पोतानी इच्छाए अन्यस्थाने जाय छे ते स्व. कृत संहरण अने चारण वा विद्याधर वा कोइ देव अनुकम्पा बुद्धिवडे अथवा वैरभाव वडे उपाडीने बीजे स्थानके मूके ते परकृत संहरण. आ परकृतसंहरण सर्वनुं होतुं नथी का छेके समणि अवगयवेयं परिहारपुलागमप्पमत्तं च । चोहसपुत्र आहारगं च नवि कोवि संहरइ ॥ १ ॥ अर्थ:- साध्वीने, अवेदीने, परिहारविशुद्धि चारित्रीने, पुला लब्धिवाळाने, अप्रमत्तने, चौदपूर्वीने, अने आहार कलforarera कोइपण संहरतु नथी. बोजाओनुं संहरण थाय छे,

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