Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 407
________________ (३५०) ॥श्रीनवतत्वविस्तरार्थः ॥ गुणा,तेथी सामा० परिहा० वर्जत्रणचारित्र स्पर्शी :सिद्ध संख्यात गुणा, तेथी छेदोपरिहा वजत्रण चारित्रस्पी सिद्धसंख्यातगुणा प्रत्येकबुद्धसिद्ध अल्प, तेणी बुद्धबोधित असं० गुणा, ( गंघहस्तिटीकामां संख्यगुण कह्या छ, )-( अहिं स्वयंबुध्धनु अ. ल्पवहुत्व दर्शाव्यु नथी तेनुं कारण श्रीबहुश्रुत जाणे.) ___ मतिश्रुतज्ञाने सिद्ध थयेला अल्प, तेथी चारज्ञाने सिध्ध थयेला संख्यगुण, तेथी प्रथमना त्रण ज्ञाने सिद्ध थयेल संख्यगुणा (महि त्रणज्ञान मति-श्रुत-अव०, अने मति-श्रुत-मनःप० एम बे प्रकारे छे तेनुं अल्पबहुत्व का नथी पण श्रीसिद्धप्राभृतमां आ प्रमाणे के के-द्विज्ञान पश्चात्कृतसिद्ध अल्प, नेथी चातुर्ज्ञान पश्चात्कृत असं० गुणा, तेथी त्रिज्ञानपश्चात्कृतसिद्ध संख्यगुणा, एमां मति-श्रुत अवधि पश्चात्कृत अल्प, मतिश्रुत पश्चात्कृतसिध्ध तेथी संख्यगुण. मनः प० चतुष्कपर्यन्त पश्चात्कृतसिद्ध असं० गुणा, अहिं अल्पबहुत्वना विसंवादनु तश्च श्रीबहुश्रुतगम्य.) जघन्य अवगाहनाए सिध्ध अल्प, उत्कृ० अवगा० सिध्ध असं० गुणा, तेथी मध्यम अवगाहना सिद्ध असं० गुणा, निरन्तर आठ समय सुधी सिध्ध थयेला अल्प, ने तेथी ७ न्यून न्यून समयो सुधी निरन्तर सिद्ध थयेला अनुक्रमे संख्यातगुणा उत्कृष्ट अन्तरे सिद्ध थयेला अल्प, तेथी जघ० अन्तरे सिद्ध थयेला संख्यातगुणा. तेथी मध्यम अन्तरे सिद्ध थयेला असंख्यगु. णा ( अहिं अन्तर ज० १ समय ने उ० ६ मासरूप ) १ अर्थात् मतिश्रुतज्ञान पाम्या बाद अवधि मनःपर्थव पाम्या विनाज केवळज्ञान पामीने सिद्ध थयेला. २ अर्थात् जेने केवळज्ञान उत्पन्न थया पहेलां मतिश्रुत ज्ञान ज हतां ( पण अव० मनःप) न होतां) एवां.

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