Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 401
________________ · (३४४) ॥ श्री नवव विस्तरार्थः ॥ प्राप्तिनो उपाय दर्शान्यो के आ नगरमां धन नामनो शेठ सवारमां जे प्रथम जगाडे तेने वे मासा ( - ५ वाल अधिक) सुवर्ण आपे छे, कपिल बीजो कोइ न जह पहोंचे ते हेलां धनश्रेष्टिने त्यां जवाने उतावळथी मध्यरात्रीए उठीनेज उतावळथी जवा लाग्यो तेथी पोलीसे पकडी राजाने सोंप्यो, त्यां प्रभाते पोतानी सत्य हकीकत जाहेर करवाथी राजाए राजी थह " हारे जे जोइए ते माग" एम कहेवाथी कपिले कहयुं के हुं विचार करीने मागीश एम कही राजा तेने विचारकरवा माटे अशोक बागमां मोकल्यो, त्यो एकान्तमां बेसी विचारे छे के वे मासा सोनुं तो एक वे दिवस चाले माटे १०० सोनैया मागं, पण एटलेथी घर गाडी वगेरे नहि थाय माटे १००० सौनैया मागं, पण तेटलेथी छोकरांना विवाह वगेरे मोटा खर्च नहिं थाय माटे लाख सोनैया मागुं, परन्तु तेटलेथी दीननो उद्धार इत्यादि नहिं थाय ए प्रमाणे आगळ क्रोड - अबज अने आखं राज्य मागवानी इच्छा थतां तुर्त .. ज लघुकर्मीपणाना प्रभावथी विचार पलटायो के अहो ? बे मासा सोनुं मागवाने बदले मारो लोभ क्यां सुधी पहोची गयो ? खरेखर लोभनो पार नथी इत्यादि वैराग्य भावना प्रगटतां तुर्त जातिस्मरण प्राप्त थतां स्वतः लोच करो देवीए आपेलो मुनि वेष अंगीकार करी राजानी आगळ जइ धर्मलाभ आप्यो, राजार कहथुं के शुं विचार कर्यो ? त्यारे क थुंके करोडोनी मागणीनो विचार यो हतो परंतु लोभ अति दुःखद लागवाथी में आ निर्लोभ अंगीकार क इत्यादि कही विहार करतां अनुक्रमे केवळज्ञान पामी राजगृह नगरीना मार्गमां एक अटवीनी अंदर बळभद्रादि५०० चोरोने प्रतिबोध आपका गया त्यां चोरोर कछु के तमने नाचतां आवडे छे ? केवलीए हा कही पण मृदंगादि बगाडवानुं ५०० चो

Loading...

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426