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॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥
(३१७)
. प्रश्न:-देवने नारकने मनुष्यने अने मत्स्य वगेरे जळचरादि तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवोने पण सम्यक्त्व होय छे, त्यां मनुष्य अने देवने तो गुर्वादिना उपदेशथी नक्तत्व जाणवावें बनी शके परन्तु . नारक जीवोने नरकमां अने मत्स्य वगेरेने समुद्रादि स्थाने नवतत्त्व जाणवानु केवी रीते बनी शके? अने जो नवतत्व ज न जाणे तो चालु पाठमां कह्या प्रमाणे तेने सम्यक्त्व केवी रीते होय ? तथा मन्द बुद्धिवाळा के जेओ नक्तत्वनुं स्वरूप जाणी शके नहि वा जीवोने सम्यक्त्व केवी रीते होय ? ____उत्तर-हे जिज्ञासु ! ए सर्व प्रश्ननो उत्तर गाथामांज कटा छे भावेण सद्दहन्तो अयाणमाणे वि सम्मत्तं एटले पूर्वोक्त
ना स्वरूपने जाणतो न होय छतां पण जो भावथी श्रद्धाकरनार हाय (-सर्वज्ञोए ए नवतत्वन जे स्वरूप का छे ते सत्य ज छे, एव दृढ मान्यतावाळो होय ) तो तेवा अज्ञान जीवने पण सम्यक्त्व होय छे,
ए प्रमाणे होवाथी जे जीव नवतत्वनो ज्ञानी होय तेने ज सम्यक्त्व होय एवो एकान्त नियम नहिं, पण बाहुल्यताए नवतत्वनु ज्ञान ते सम्यक्त्व उत्पन्न करवामां प्रबळ साधनरूप होवाथी नवतत्वना ज्ञानीने सम्यक्त्व होइ शके ए वात बहुधा निर्विवाद छे, ...' हवे नवतत्वन स्वरूप जाणवाथी सम्यक्त्व ( शुद्ध श्रद्धा) शी रीते उत्पन्न थाय ? ते कहेवाय छे-नवतत्वना स्वरूपने संक्षेपथी जाणनारा जीवने एवी हृदयभावना प्रगट थाय के सर्वज्ञे जे आ नवनत्वरूप पदार्थों कह्या छे ते जगतमां कोइ साक्षात् तो कोइ अनु. मानादि प्रमाणथी पण अवश्य संभवे छे, वळी सर्वज्ञोए ज्ञानमा जे देख्युं छे तेज कयूं छे, माटे ते ते पदार्थों दुनियामां विद्यमान छे ज, इत्यादि संक्षेप ज्ञानीने पदार्थोनी अस्तित्वादिभावना द्वारा सम्य