Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 390
________________ || मोक्षत वेनवद्वारस्वरूपम् ॥ ( ३३३ ) १३ बुध्ध एटले गुरु वगेरेना बोहिय-बोध पामेला अर्थात् जेने गुरु आदिकना उपदेशथी संसारनुं स्वरुप असार लागतां वैराग्यभावना प्रकट थवाथी केवळज्ञान प्राप्त करी मोक्षे गया होय ओ बुध्धबोधितसिध्ध. १४ जेओ १ समयमा एकज मोक्षे गया होय परन्तु ते समये aat द्वीपात्मक मनुष्यक्षेत्रमांथी बीजो कोइ पण जीव मोक्षे न गयो होय तेवा जीवो एकेसिध्ध. १५ तथा ? समयमा जे अनेक जीवो समकाळे मोक्षे गया होय ते सर्व जीवो अनेके सिध्ध कहेवाय. १-२ एक समयमा जघन्यथी १ ने उत्कृष्टथी १०८ जीवो मोक्षं जाय छे. तेमां पण एवो नियम छे के १ थी ३२ सुधीनी संख्यावाळा जीवो लागलागट आठ समय सुधी मोक्षे जाय ने नवमे समये अवश्य अन्तर पडे अर्थात् विवक्षित समये १ जी. व मोक्षे गयो. पुनः बीजे समये १ जीव मोक्षे गयो, पुनः त्रीजे समये १ जीव मोक्षे गयो, ए रीते यावत् आठमा समय सुधी एकेक जीव मोक्षे जाय त्यारबाद नवमे समये कोइपण न जाय ए प्रमाणे बे बे-त्रण त्रण यावत् बत्रीस बत्रीस जीव लागलागट आठ समयसुधी मोक्षे जाय ने नवमे समये कोइपण मोक्षे न जाय. पुनः ३३ थी ४८ सुधीनी संख्यावाळा जीवो लागलोगट ७ समय सुधी मोक्षे जाय ने आठमे समये कोइ - पण न जाय, तथा ४४ थी ६० सुधीनी संख्या ६ समयसुधी, ६१ थी ७२ सुधीनी संख्या ५ समयसुधी, ७३ थी ८४ सुधीनी संख्या ४ समयसुधी, ८५ थी ९६ सुधीनी संख्या ३ समयसुधी ९७ थी १०२ सुधीनी संख्या २ समय सुधी ने १०३ थी १०८ सुधोनी संख्या १ समय सुधी मोक्षे जाय ने त्यारबाद अवश्य कोइ पण मोक्षे न जाय. ३ पुनः सिध्धना जे १५ भेद का ते कया कया जीवो मोक्ष पामी शके ते विशेष स्पष्ट समजी शकाय ते कारणथी छे एम श्री प्रज्ञाप०जीमां कछु छे अन्यथा परस्पर अन्तर्गतपर्णु

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426