Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 394
________________ ॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ (३३७) अवतरण-आ गाथामां गृहस्थलिंगसिध्ध आदि दृष्टान्त दर्शावे छे, ॥ मूळ गाथा ५७ मी,॥ हिगलिंगसिद्ध भरहो, वक्कलचीरी य अन्नलिंगम्मि सह सलिंगसिद्धा, थीसिद्धा चंदणापमुहा ॥ ५७॥ . ॥ संस्कृतानुवादः॥ गृहालगसिध्धो भरतो, वल्कलचीरी चान्यलिंगे। साधवः स्वलिंगसिध्धाः, स्त्रीसिध्धाश्चंदनाप्रमुखाः ॥५७ ॥ शब्दार्थ: गिहिलिंगसिध्ध-गृहस्थलिंग- | साहू-सर्व साधुओ सिध्ध | सलिंगसिध्या-स्वलिंगसिध्ध भरहो-भरतचक्रवर्ती · थीसिध्धा-स्त्रीलिंगे सिध्ध वक्कलचीरी-वल्कलचीरी | चंदणा-चन्दनवाला अन्नलिंगम्मि-अन्यलिंगे सिध्ध | पमुहा-वगेरे .. गाथार्थ:-भरत चक्रवर्ति गृहस्थलिंगे सिड, वल्कलचीरी प्रश्नः-अहीं अतीर्थपणुं बे प्रकारचें होय छे, १ अवसपिणी अथवा उत्सर्पिणीकाळमां प्रथम तीर्थंकर प्रभुनुं तीर्थ स्थपायु न होय त्यां सुधी २ तीर्थकर भगवानद् तीर्थ स्थपाया बाद विच्छेद पाम्यु होय अमे नवु तीर्थ स्थपायुं न होय त्यांसुधी तेमां अहिं मरुदेवा माता तो प्रथमभेदे अतीर्थसिद्ध छे त्यारे बोजा कोइ जीवो बीजे भेदे अतीर्थ सिद्ध होय के नहि ? उत्तर-पूर्व भगवाननुं तीर्थ विच्छेद पाम्या बाद ने आ. गळना भगवान नवु तीर्थ स्थापे ते प्हेलां पण अनेक जीवो जातिस्मरणादि ज्ञानथी वैराग्य पामी मोक्षे जाय छे तेओ प. ण अतीर्थसिद्ध ज कहेवाय एम श्री प्रज्ञापनावृत्तिमां कह्य छे

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