Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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॥ मोक्षतत्त्वे नवहारस्वरूपम् ॥ (३३९) . तथा चंपा नगरीना दधिवाहन राजानी पुत्री वसुमती के जे शतानीक राजानी चहाइयी चंपा नगरी भागतां:केद पकडाइ अने आखरे कौशाम्बी नगरीमा धनावह श्रेष्ठिए ते राजपुत्रीने वेचाती लइ तेनुं चन्दना नाम राख्युं अने त्यांते शेठनी मूला नामनी स्त्रीए शोक्य थवाना भयथी माथु मुंडावी बेडीमां नांखी हती,छेवटे श्रीम. हावीर स्वामिभगवाननो अडदना बाकळानु अति उत्सुकता पूर्वक दानापी अभिग्रह पूर्यो हतो ते चन्दनबाळा श्रीमहावीर स्वामिनी मुख्य साध्वी हती,ते पोतानी शिष्या(चेली)मृगावती सहित श्री महावीरप्रभुनी देशना सांभळवा आवेल हती ते अवसरे चन्द्र सूर्य मूळ विमाने वंदना करवा आवेल होवाथी संध्या समय थइ जवा छतांपण मृगावतीनीने खबर पडी नहिंने चन्दनबाला तो प्रवीण होवाथी उपासरे गयां, त्यारबाद चन्द्र सूर्य जवाथी अंधकार व्याप्त थतां मृगावतीजी पण भय पाम्या छतां शीघ्र उपाश्रये आव्या, त्यां गुरु चंदनवाळाए सहज ठपको आप्यो के आटलं असुर थतां सुधी त्यां बेसी रहे, तमारा सरखा कुलीन साध्वीने उचित नथी ए उपालंभने शीखामणरूप गणी गुरुश्री पासे पोतानो अपराध वारंवार खमावे छे ते दरम्यानमां च. न्दनबाळा साध्वी निद्रावश थयेल छ, अहिं मृगावतीजीने पोताना अपराधनो पश्चात्ताप करतां केवळज्ञान उत्पन्न थयु. जेथी गुरुनी हाथ नजीकथी सर्प जतो देखी गुरुनो हाथ खसेडयो, जेथी चंदनबाला जागी उठ्याने कारण पूछवाथी सर्पनी बात कही त्यारे चंदनबालाए कडंके तने अंधकारमा सर्पनी केम खवर पडी?मृगावतीए कयुके "गुरु प्रसादथी,"त्यारे चन्दनबालाए कह्युके शुं तमने केवळज्ञान थयुंछे?तोपण मृगावतीए एज जवाब आप्यो त्यारे मृगा वतीजीने खमावतां चन्दनबालाने पण केवळज्ञान उत्पन्न थयु, ए प्रमाणे चन्दनबाळा वगेरे जे मोक्षे गयां ते स्त्रोलिंगसिध्ध कहेवाय,
१ अहिं दिगम्बर संप्रदाय एम कहे छे के स्त्रीने मोक्ष
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