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॥मोक्षतत्वेनवद्वारस्वरूपम् ॥ (३३५)
॥ संस्कृतानुवादः॥ जिमसिध्धा अरिहंता, अजिनसिध्धाश्च पुंडरीकप्रमुखाः। गणधारिणस्तीर्थसिध्धा, अतीर्थसिध्धा च मरुदेवी ॥५६॥
॥शब्दार्थः॥ जिणसिध्धा--जिनसिध्ध गणहारि--गणधरो अरिहंता:-तीर्थंकरो तित्थसिध्धा--तीर्थसिध्ध अजिणसिध्धा--अजिनसिध्ध अतित्यसिध्धा--अतीर्थसिध्ध पुंडरिय--पुंडरिक गणधर . मरुदेवी--मरुदेवा माता पमुहा--वगेरे
गाथार्थ:-श्री तीर्थकरो ( मोक्षे जाय ते ) जिनसिध्ध, अने पुंडरिक गणधर वगेरे अजिनसिध्ध, सर्व गणधरो तीर्थसिध्ध, अने मरुदेवा माता अतीथसिध्ध कहेवाय.
विस्तरार्थ:-अरि एटले रागद्वेषादिरुप शत्रुने हंत एटले हणनार ते अरिहंत सर्व केवळिभगवान कहेवाय छे, परन्तु अ. हिं अधिकारना वशथी सर्व केलि भगवान नहिं पण श्रीतीर्थकर भगवानज अरित गणाय छे, तेवा तीर्थंकर परमात्माओ जे मोक्षे जाय ते जिन सिध्ध ( जिन तीर्थंकर ए अर्थ होवाथी) कहेवाय.
तथा श्री आदीश्वर भगवानना मुख्य गणधर श्री पुंडरीक गणधर इत्यादि जेओ नीर्थंकर पदवीने नहिं पामेला मोक्षे गया होय ते सर्व अजिनसिध्ध. ___ तथा श्री गणधर वगेरे जेओ तीर्थनी ( चतुर्विध संघनी) स्थापना थयाबाद मोक्षे गया होय ते सर्व तीर्थसिध्ध कहेवाय. अहिं श्री गणधर महात्माओ अवश्य तीर्थ स्थपाया बादन मोक्षे जाय एवो नियम होवाथी बीजा जीवोने तीर्थ सिध्धपणे नहि दर्शावतां मात्र श्री गणधरोनेन तीर्थसिध्ध कह्या छे. परंतु एथी मात्र गणरोज तीर्थसिध्ध होय ने बीजा न होय एवो