Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 391
________________ ॥श्री नवश्वविस्तरार्थः॥ अवतरणः-पूर्व गाथामां जे १५ प्रकारना सिध्ध कडा तेमां जिनसिध्ध वगेरे कोण कहेवाय ? ते दर्शवे छे. त्यां प्रथम आ गाथामां जिनसिध्ध-अनीनसिध्ध--तीर्थसिध्ध--ने अतीर्थसिध्व ते कोण ? ते कहे छे. ॥ मूळ गाथा ५६ ॥ जिणसिद्धा अरिहंता, अजिणसिद्धाय पुंडरियपमुहा । गणहारितित्थसिद्धा, अतित्थसिद्धा यमरुदेवी ॥५६।। होवाथी सिध्धना १५ भेद थइ शके ,नहिं पण वास्तवीकरीते नीचे प्रमाणे सिध्धपरमात्माना बे अने त्रण भेद पडी शके ते आ प्रमाणे - सिध्धना २ भेद- जिनसिध्ध-अजिनसिध्ध अथवा तीर्थसिध्ध-अतीर्थसिध्ध, अथवा एकसिध्ध-अनेकसिध्ध एम त्रण रीते बे बे भेद थइ शके छे. सिध्धना ३ भेद-गृहलिंगसिध्ध-अन्यलिंगसिध्ध-स्पलिंगसिध्ध, अथवा स्त्रीलिंगसिध्ध-पुरुलिंगसिध्ध ने नपुंसकलिंगसिध्ध, अथवा स्वयंबुध्धसिध्ध प्रत्येकबुध्धसिध्ध-ने बुध्धबोधितसिध्ध. ___ए प्रमाणे प्रत्येक सिध्धने ६-६ भेद होइ शके छे-जेम के श्वी महावीरस्वामि मोक्षे गया तो तेओ जिनसिध्ध छे. तीर्थसिध्ध छे, स्वलिंगसिध्ध छे, पुरुषलिंगसिध्ध छे, स्वयंबुध्धसिध्ध छे, ने पोते एकला मोक्षे गया छे माटे एकसिध्ध पणछे ए रीते मरुदेवामाता अजिनसिध्ध-अतीर्थसिध्ध-गृहलिंगसिध्ध स्त्रीलिंगसिध्ध स्वयंबुध्धसिध्ध-ने प्रायः अनेक सिध्ध छे. इ. त्यादि रीते एकसिध्धमा सिध्धना १५ भेदमांनो एकज भेद होय तेम नहिं पण वधुमां वधु ६ भेद होय.

Loading...

Page Navigation
1 ... 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426