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(३२६) ॥ श्री नवतत्वविस्तरार्थः ॥
गाथार्थ:-अनंत उत्सर्पिणीओ ( मळीने ) १ पुद्गल परावर्त काळ जाणवो, ते (-तेवा ) अनंत पुद्गलपरावर्त प्रमाण (जेटलो) अतीत काळ (-भूतकाळ ) छे, अने (तेथी भूतकाळथी) अनंतगुण (पु० परा० जेटलो ) अनागत काळ ( -भविष्य
काळ ) .
विस्तरार्थः-पूर्व गाथाना विस्तरार्थमां कह्या प्रमाणे १८ को० को० पल्योपमनो १ सागरोपम, अने १० को० को० सागरोपमनी १ अवसर्पिणी अथवा १ उत्सर्पिणी (काळ विशेष ) थाय छे, एबी अवसर्पिणीओ वा उत्सर्पिणीओ अनंत थाय त्यारे एक पुद्गलपरावत थाय, अने ते अनंत पुद्गल परावर्तनो एक अतीत अडा (-भूतकाळ ) थाय, अने तेथी अनंतगुणा पुद्गलपरावर्त्तनो एक अनागत अद्धा (-भविष्यकाळ ) थाय. आ स्थाने केटलाएक एम पण कहे छे के जंटला पु० परा० नो भूतकाळ छे. तेटला पु० परा० नो भविष्यकाळ छे.) ।
१ पुद्गलपरावर्त आठ प्रकारे छे ते ओ प्रमाणे
१- चौद राजमां जेटला पुदगलो छे ते सर्व पुद्गलोना सर्व अणुओने कोइ एक जीव औदारिक देहपणे परिणमावी परिणमावीने मूके-विसर्जे तेमां जेटलो काळ व्यतीत थाय तेटलो काळ औदा० वादर द्रव्यपुरलपरावर्त, तेवीज रोते वैक्रिय बा० द्र० पु० परा० इत्यादि ( आहारक सिवाय ] ७ प्रकारना बा० पुद्गल परा० जाणवा,
२-चौदराजमा जेटला पुनलो छे ते सर्व पुगलना परमाः गुओने औदा० देहपणे अनुक्रमे परिणमावी परिणमावी वि. सर्जे तेमां जेटलो काळ व्यतीत थाय तेटलो काळ औदा० सू. क्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्त, ए प्रमाणे वैक्रियादि सात प्रकारना सू० द्रव्य पुद्गलपरावर्त्त जाणवा. [ अहिं पुद्गल परिणमननी गणत्रीमां एक समये घणा नवा (-प्रथम नहिं ग्रहण करेला )