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. ॥ संवरनवे परिषहवर्णनम् ॥
(२३३)
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दारुकने का के जै प्रणे जण सूता छ तेओर्नु हुं भक्षण करीश, अने तु जो तेओनु रक्षण करनार होय तो मारी सामे युद्ध करवा तैयार था. दारुके युद्ध करवानु अङ्गीकार करी पिशाचनी साथे युद्ध करवा मांडयु पण पिशाचने जीतवो अशक्य जाणी अत्यन्त कोधायमान थयो, हवे अहिं दारुक जेम जेम कोप करतो जाय छे तेम तेम कोपरूप पिशाच पण पोतार्नु शरीर वधारती जाय छ, ए प्रमाणे वारंवार शरीर वधारता पिशाचनी सामे युद्ध करीने हाथ पग प्रण छोलाइ गया छ ते दलामा एक प्रहर पूर्ण थवाथी सत्यकने उठाडी पोते सूइ गयो. सत्यकने पण तेवो रोते युद्ध करता पोताने जेम जैम कोप ध. धतो जाय छे तेम तेम पिशाच शरीर वधारतो जाय छे. ने युद्धमा जीत मळती नथी. ए प्रमाणे करतां बीजी प्रहर पूर्ण थवाथी बळदेवने उठाडी सत्यक सूइ गयो, बळदेवे पण क्रोध. सहित तेधीरीते युद्ध करवाथी विजय नहिं मळतां धीजी प्रहर पूर्ण थये कृष्णने उठाडीने पोते सूइ गयो. कृष्गनी साथे पण पिशाच यद्ध को छे, ते पखते कृष्णाना मनमां एवो संतोष उ. पज्यो के ह वासुदेवनीमाथे आवं युद्ध करनार आ जबरी मल्ल कोण हशे ? कारणके शूरवीर पुरुषोनी सामे र पुरुष युध्ध करनार होय तो तेओ घणा खुशी थाय छे. तेथी कृष्णधासुदेव जेम जेम सन्तोष पामे छे तेम तम आ पिशाचन शरीर घटतुं जाय छे. अने ए प्रमाणे वासुदेवना सन्तोषथी पिशाच घटतो घटतो तदन बारीक थइ गयो जेथी कृष्णे ते सूक्ष्मरूप वाळा पिशाचने पोतानी नाभीमां गखी मूक्यो, हवे प्रभात थ. तां कृष्णे सर्वने छोलायला हाथ पगवाळा देख्या अने पूछयु त्यारे गत्रीनी बनेली सर्व हकीकत कही त्यारपछी कृष्णे नाभीमांथी ते पिशाचने बहार काढी देखाडी कह्य के रात्रे जे आव्यो हतो ते कोप-क्रोध पिशाच हतो. एनी सोथे तमो कोप करी युद्ध करवा लाग्या तथी ए कोप पोतानी देह बधारतो गयो कारणके कोपबडे कोप वृद्धि ज पामे छे, अने तथी तमो पराभव पाम्या, अने में सन्तोष अने शान्तताथी