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॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥
दर्शन क्षयोपशमभाववाळां होवाथी तेमां मोक्ष न होय. .
- ए प्रमाणे १४ मूळ मार्गणामांथी गति-इन्द्रिय-काय-ज्ञान -चारित्र-दर्शन-भव्य-संज्ञि-सम्यक्त्व ने आहारक ए १० मूळ मार्गणामां तथा मनुष्यगति विगेरे १० उत्तरमार्गणामां मोक्षप्राप्ति होय छे. पण शेष योगवेद-कषाय लेश्या ए ४ मूळ मार्गणामां तथा नरकगति आदि ५२ उत्तरमार्गणामां मोक्ष प्राप्ति होय नही. त्यां चार मूल मार्गणाए मोक्षप्राप्ति नहिंहोवानुं कारण नीचे प्रमाणे-मोक्ष ए स्थिर परिणामे-स्थिरध्याने होय छे, ने योग तथा लेश्या बन्ने चळाचळ ( अस्थिर ) परिणामरुप छे, एटले जीवनी चळ अवस्थानुं निमित्त ले माटे योग तथा लेश्या सद्भावे मोक्षना अभाव छ, पुनः योग अने ले. श्याने अन्वयव्यतिरेक संबंध के, माटे लेश्या होते याग अवश्य होय, ने लेश्या न होय तो योग पण न होय. अथवा ज्यांसुधी योग छे, त्यां सुधी लेश्या छे, ने योग नथी तो लेश्या पण नथी. एवो योग-लेश्याने परस्पर संबंध छे. ___तथा ज्यांसुधी वेद-तथा कषायनो उदय होय त्यां सुधी उपशम यथाख्यात चारित्र पण प्राप्त न थाय तो मोक्षप्राप्तिना कारणरुम क्षायिक यथाख्या० चारित्रनी तो वातज शी? अने क्षा० यथा० पाम्या विना मोक्षपण होइ शके नहिं, माटे सवेदी तथा सकषायी जीवने मोक्षप्राप्ति नथी.
ए प्रमाणे मोक्षना सत्पद नी प्ररुपणा मार्गणाद्वारे करी.
अवतरणः-पूर्वनी ३ गाथाओमां मोक्षनो पहेलो भेद ( सत्पदप्ररुपणोद्वार ) वर्णव्यु, अने हवे आ गाथामां मोक्षनो