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॥ श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः॥
'प्रतिबद्ध देश कहेवामां आवे छे. आ देश विभागनो व्यपदेश ए. क प्रदेशन्यून अनंत प्रदेशथी मांडीने यावत् द्विप्रदेशी विभाग मुधी थई शके, २ अने ते व्यपदंश अनंत प्रदेशात्मक संपूर्ण स्कंधथी मांडीने यावत् त्रिप्रदेशी स्कंध सुधीना सर्व स्कंधोमां थइ शके, परन्तुं द्विपदेशी स्कंधमां देश विभाग होइ शके नहिं, कारण ए स्कधनो विभाग करवां जतां वन्ने विभागो छटा थायतो बे परमाणु कहेवाय अने संलग्न होय तो द्रिप्रदेशी स्कंध अथवा बे प्रदेशो कहे वाय, पण देशविभाग कोइ रीते न कहेवाय. धर्मादि द्रव्योमा देश विभाग रूप भेद आ प्रमाणे छे.
. श्री नवतत्त्वभाष्यमा ३१मी.गाथानी वृत्तीमां का छ. के "वळी देश एटले मविभाग भाग ते तेनोज पटले धर्मास्तिकायनी विवक्षावडे एटले बक्तानी इच्छावटे अर्धादि एटले अ. धं त्रिभाग अने चतुर्भाग इत्यादि थाय छे ” छ द्रव्योना जुदा जुदा देश विभाग गणवामां उपयोगी होवाथी अप्रतिबद्ध देश अने प्रतिबद्ध देश ए बे भेद ग्रंथ लेखकना अभिप्रायथी थयेला छे, कारण के धर्मास्तिकायादि अखंड द्रव्योमां खंडरूप देश विभागने प्रतिबद्ध देश तरीके, खंडित थता पुद्गलद्रव्यमां थता विभागीने अप्रतिबद्ध देश तरीके जणाक्वानी जरुर छे. पुनः पुद्गलद्रव्योमा बन्ने प्रकारनां देश पण होय छे,
२ जेम एक प्रदेशन्यून धर्मा० थी मांडीने द्विप्रदेशावगाही धर्मा० विभाग सुधीना सर्व विभागो धर्मा० देश तरीके गणाय. जेम १० प्रदेशीस्कंधमां नवप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, सतप्र. देशी षट्प्रदेशी, पंचप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, अने द्विप्र. देशी ए ८ देश विभाग कहेवाय तथा १० प्रदेशविभाग, अने १ स्कंध कहेवाय.
३ एक प्रदेशन्यूनरूप धर्मा० विभाग संपूर्ण धर्मा० . नी अपेक्षाए देश छे. अने त्रिप्रदेशी पुद्गल स्कंधमां द्विप्रदे