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॥ श्रीवतत्व विस्तरार्थः ॥
निर्वृत्तिनुं ) एकज पड ( अंगुलना असंख्यतमा भागनुं जाडुं ) पथराइ रहेलुं छे, ते इन्द्रिय परमाणुओना पडवडे जीह्राषर आवेला खारा खाटा पदार्थनो अनुभव करी शकाय छे, परन्तु देखाती जी .. भवडे खारा खाटा पदार्थना रसनो अनुभव जीवने होइ शके नहि. २ तथा देखाती नासिकाना पोलाणमां उपरना भागमां अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली घ्राणेन्द्रियनी अभ्यन्तर आकृति छे तेज गंध विषयने ग्रहण करी शके छे. ३ तथा चक्षुमां कीकीनी अंदर अंगुलना असंख्यातमा भागजेवडी सूक्ष्म अभ्यन्तर इन्द्रियाकृति छे तेज रूप वा आकार देखी शके छे, परन्तु आंखनी कीकी मात्र विषय ग्रहण करी शकती नथी. ४ तथा कर्णपर्पटिकाना पोलाणमां अंगुलना असंख्यातमा भाग जेवडी सूक्ष्म कर्णेन्द्रिय पुनलोनी अभ्य न्तर आकृति गोठवायली छे, जे शब्दने ग्रहण करी शके छे. ५
उपर प्रमाणे होवाथी त्वचा ए स्पर्शेन्द्रियनो आधार (स्थान) छे, पण त्वचा ए पोते स्पर्शेन्द्रिय नथी, पुनः जीह्वा ए रसनेन्द्रि यनुं स्थान छे पण जीह्रा पोतेज रसनेन्द्रिय नथी. पुनः नासिका ए घ्राणेन्द्रियनुं स्थान छे पण नासिका पोते घ्राणेन्द्रिय नथी, तथा आंख - नेत्र ए चक्षु इन्द्रियनुं स्थान छे, पण आंख (डोoा के कीकी) पोते चक्षुइन्द्रिय नथी, तेमज कान ए कर्णेन्द्रियनुं स्थान छे पण कान पोते कर्णेन्द्रिय नथी ए प्रमाणे स्थान रूप बाह्य निर्वृत्ति अने बिषय ग्रहण करनार अभ्यन्तर निर्वृत्ति बन्ने भिन्न छे एम समज. ॥ इति इन्द्रियस्थान विचारः ||
॥ अभ्यन्तरेन्द्रियना आकार ॥
अभ्यन्तर स्पर्शेन्द्रिय जे जीवनुं जेतुं शरीर होय तेवा आकारनी है, अर्थात् भिन्न भिन्न आकारनी छे – अभ्यन्तर रसनेन्द्रिय