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॥श्रीनवतत्वविस्तरार्थः ॥
जीवोने अभ्यन्तर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रियना आकारो नियतज होय छे, जे आगळ कहेवाय छे. . . । इन्द्रियोने स्थाने देखातो कर्णपर्पटिकादि बाह्य अंगनो आकार ते 'बाह्यनित्ति द्रव्येन्द्रिय,' जेम चक्षुना डोळा इत्यादि, ए बाह्य अंगरचनारूप इन्द्रियोनो आकार दरेक जीवने जुदी जुदी जातनो होय छे. आगळ कहेवाता इन्द्रियोना आकार आ बायनिकृत्तिना नहि पण अभ्यंतरनिर्वृत्तिना जाणवा. अहिं बन्ने स्थाने 'नित्ति एटले रचना' अर्थात् इन्द्रियोनी जे अंदरना भागनी रचना ते अभ्यन्तरनिर्वृत्ति अने इन्द्रियोनी बहारनी जे रचना ते बाह्यनिवृत्ति कहेवाय, अथवा निवृत्ति एटले आकृति एवो अथं करतां इन्द्रियोनी अंदरना भागनी जे चक्षुगोचर न थइ शके तेवा सूक्ष्म अने स्वच्छ पुद्गलोनी अथवा आत्मप्रदेशोनी जे आकृति ते अभ्यंतरनिर्वृत्ति अने बहारना भागमा सर्वने साक्षात् देखाता कर्णपर्पटिका (कानपापडी) विगेरे आकृति ते बाह्यनिवृत्ति 'कहेवाय. ___ इन्द्रियनी अभ्यन्तर आकृतिमां ( अभ्यन्तरनिर्वृत्ति द्रव्येन्द्रियमां ) रहेली जे विषय ग्रहण करवानी शक्ति ते 'अभ्यन्तर उपकरणेन्द्रिय' कहेवाय. अहिं ( उपकरण एटले ) इन्द्रियने विषय ग्रहण करकामा उपकार करनार जे शक्तिविशेष ते उपकरण कहेवाय, जेम श्रोत्रेन्द्रियनी श्रवणशक्ति अने रसनेन्द्रियनी आस्वादनशक्ति.
तथा जीवने इन्द्रिय द्वारा विषयबोध करवानी जे शक्ति, (अथवा इन्द्रियावरणकर्मनो क्षयोपशम) ते 'लब्धि भावेन्द्रिय' कहेवाय. . १ कर्णन्द्रियादिनो जेम पर्पटिकादि बाह्य आकृति छे तेवीरीते स्पर्शन्द्रियनी बाह्य आकृति जुदी नहिं होवाथी स्पर्शेन्द्रियनी अभ्यन्तराकृति अने बाह्याकृति एकज छे...