Book Title: Nandanvan Kalpataru 2019 06 SrNo 42
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 68
________________ नरेस ! आभापुरीए पणवीसजोयणंते अच्चंतमणोहरा पउमपुरी विज्जइ । तत्थ सूर-वीरपुरिससिरसिरोमणी पउमसेहरो महीवई । तस्स य सारयससिवयणा सारयासरिसमइसालिणी रइरूवा नाम महादेवी अस्थि । तीए कुक्खिसंभवं चंदावई नाम मं जाणेसु । नायजिणधम्मतत्तं अईयबालभावं कामिजणमणहरं जोव्वणवयारूढं मं निरिक्खिऊणं मम जणगो अणुरूवं वरचितं कासी । जओ भणियं - निप्पंकसुवन्नसमुज्जला वि सुइसीलसोरभजुया वि । केयइफडसव्व सुया, परोवयाराय निम्मविया ॥ कुलं च सीलं च सणाहया य, विज्जा य वित्तं च देहो वयं च । वरे गुणा सत्त विलोअणिज्जा, अओ परं भग्गवसा हि कन्ना ॥ कन्नत्ति जाया महई हि चिंता, कास प्पदेय त्ति महावियक्को । दिण्णा सुहं जाहिइ वा न वा, कन्नापिउत्तं खलु कट्ठदाइं ॥ जम्मंतीए सोगो, वड्ढंतीए य वड्डए चिंता ।। परिणीआए दंडो, जुवइपिआ दुक्खिओ निच्चं ॥ एयम्मि समए को वि नेमित्तिओ रायसहामज्झम्मि समागओ । रण्णो चिंताकारणं नियनाणेण नच्चा रायाणं कहेइ - 'राय ! चिंतं मा कुणसु, तव कण्णाए गुणरयणरयणागरो आभापुरीनरीसरो भत्ता होही' । एवं नेमित्तियवयणसुहारसपाणेण हरिसभरियमाणसा मायपियरा वसण-भूसण-धणेहिं नेमित्तियं सक्कारिऊणं विसज्जेइ । अहं पि पियनामं सोच्चा धरियरोमंचकंचुगा वयणाइरेगाणंदं पत्ता । अह अण्णया सहीजणपरिवरिया अहं जलकेलिनिमित्तं सरियातीरे गच्छित्था । तत्थ थिएण तावसाहमेण एएण इंदजालियविज्जाए तहा हं विप्पयारिआ, जहा त विणा हं न कंचि पासित्था । मज्झ सहीणं दिट्ठिबंधं विहेऊण मं च अवहरिअ एत्थ आगंतूण पुक्खरिणीए जालिमा-मग्गेण अवयारित्ता एसो एयम्मि वणम्मि आणेसी । राय ! दुक्खसागरमग्गाए मज्झ सहेज्जसमए एत्थ समागंतूण इमाओ महावसणाओ तुं मं मुंचित्था । गुणरयणजलनिहि ! मणोहर ! तुम्ह गुणे कहिउं न पारेमि, अहवा नियपियारक्खणकए जं किंपि विहिज्जइ तत्थ उवयारो कहं मण्णिज्जइ ? स-पियापालणं पियस्स धम्मो च्चिय । जओ - बालत्तणम्मि जणओ, जुव्वणपत्ताइ होइ भत्तारो । वुड्ढत्तणेण पुत्ता, सच्छंदत्तं न नारीणं ॥ ___ जइ अहं अत्थिणी होती तया तव कित्तिं गाएज्जा, जसपडहं च वाएज्जा । इयाणि एरिसायारविसेसेण भवंतं पाणप्पियं जाणामि । जओ - आयारो कुलमक्खेइ, देसमक्खेइ भासणं । संभमो नेहमक्खेइ, देहमक्खेइ भोयणं ॥

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