Book Title: Nandanvan Kalpataru 2012 11 SrNo 29
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 18
________________ (२) ग्रीष्मः ग्रीष्मे भीष्मतपप्रसर: सिकतानिचयो ज्वलदङ्गारः शैलसमूहो गतशृङ्गारः शोषितसलिलो जलभृङ्गारः, प्रखरोऽतुहिनकर:..... अनिलोऽनलमिव वपुषि विभाति स्विन्नतनुर्जलधरतां याति शुचिता तनु-वसनानि जहाति, लोको मलिनतर:..... ऊर्ध्वमधो वायोः परिवर्त्तः धूलिसमूहस्तेन ननर्त सम इव जात: शैलो गर्त्तः, अन्धो दिक्विसरः...... उष्णो दिवसस्तथैव दोषा तप्तः पुरुषस्तप्ता योषा कूपाः पुष्करिणी गतशोषा, नद्यां धूलिभर............ जलयवस्य जले विचरन्ते तालवृन्तकैः धर्म हरन्ते कुञ्ज-बनीषु भूशं विहरन्ते, स्थिरो न जननिकर:..... शीतलपेयास्वादसमी सुरभितजलशीकरसन्ती मधुररसालास्वादविसी, ग्रीष्मः सौख्यकर:........ ग्रीष्मे भीष्मस्तपप्रसर..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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