Book Title: Nandanvan Kalpataru 2012 11 SrNo 29
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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काव्यानुवादः
मुक्तकानुवाद- द्वयी
गुर्जरभाषायां मूललेखक: - श्रीहर्षब्रह्मभट्टः संस्कृतानुवादकः - डॉ. वासुदेव वि. पाठकः,
-
१.
धर्म पाळी, शुं धाड मारी हें ? हाडमारी नरी वधारी व्हे; अक कहेवाता पुण्यने खातर, यातनाओ केटली गुजारी हें ?
२.
मन हवे जीवे मरे, सरखुं ज छे, लाश डूबे के तरे, सरखुं ज छे; आंखमां केवळ हो सूनी सांज तो, फूल खीले के खरे, सरखुं ज छे.
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६१
१.
'वागर्थः’
धर्मपालनेन वा, किं नु विशिष्टं कृतम् ? संघर्ष-वर्धनम् । कथित पुण्यार्थं, त्रासातिवर्धनम् ॥
२.
मनसो जीवनं मरणं वा, समानमेव कुणपस्य तरणं मज्जनं वा, समानमेव; नेत्रे यदि शुष्कैव सन्ध्या स्यात्तदा, पुष्पस्य पतनं विकसनं वा, समानमेव ॥
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