Book Title: Nandanvan Kalpataru 2012 11 SrNo 29
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 22
________________ (६) शिशिरः शिशिर: सरति शीततरः शीतलहर्यः प्रसरन्त्यभितः हिमकणनिचिताः अवनी-सरितः श्यामीभूता वन्यो हरितः, स्त्यानीभूतसरः..... प्रवहति वेगिलशीतसमीर: भ्रमितमनुजवद् निभूतमधीर: कम्पितनिर्बलजन्तुशरीरः, स्वच्छन्देन चर..... पतति पतत्रिणमिव तरुपर्णः कलुषितकोमलकायापर्णः मर्मररवपूरितजनकर्णः, प्रबलस्नेहहर:..... विरलीभूतसघनतरुकुञ्जः मूकीभूतमधुकरमधुगुञ्जः वायुप्रेरितकचवरपुञ्जः, बहुमालिन्यकर...... मञ्जरीपिञ्जरिताम्रवनीकः कोकिलकलकूजनकमनीकः कलरवमुखरचलज्जलनीकः, मोहितजननिकर:..... शालिवने कर्षकजनगीतं गोधूमस्य क्षेत्रं पीतं खलभूमौ धान्यं चाऽऽनीतं, कृषिकस्तोषधरः..... शिशिर: सरति शीततर:....... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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