Book Title: Nandanvan Kalpataru 2012 11 SrNo 29
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ (३) वर्षा प्रावृषि वर्षति वारिधरः श्यामघटा घनघोरा गर्जति दशदिशि विद्युद्वलयः स्फूर्जति, रविरपि निहतकर:..... नृत्यति बर्हिगणस्तनुलोलं पिबति चातको जलकल्लोलं, पूर्णजलं च सर:..... टप-टप् पतति जललवनिकर: सम्-सम् झिल्लीरवोऽतिमुखरः, सान्द्रस्तिमिरभरः..... नभसि समुड्डयतेऽत्र बलाका आश्रयमीक्षन्तेऽथ वराकाः, वायुः शीततरः..... प्रियपथमीक्षन्ते विरहिण्यः विगलदश्रुसलिलाक्षिगृहिण्यः, दारुणदुःखकर:..... कृषीवलाः समुपात्ता तुष्टिं लब्ध्वा सजलघनाघनवृष्टि, दुर्भिक्षेतिहर:..... कुरुते काञ्चनवृष्टि जलदः जगति जन्तुगणजीवनफलदः, तर्पितसकलधर:..... प्रावृषि वर्षति वारिधरः १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110