Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ VI धर्म का मूल्य, अमूल्य है, हमेशा एक रूप ही रहता है, अन्य वस्तुओं के मूल्य की तरह घटताबढ़ता नहीं है। एक कुशल दुकानदार के पास मनोविज्ञान होता है, वह जानता है कि ग्राहक क्या चाहता है? और एक अकुशल दुकानदार जो उसके पास है, उसे बेचने का, ग्राहक से खरीदने का विशेष आग्रह करता है। ठीक वैसे ही एक कुशल वक्ता की बात है कि श्रोता क्या चाहता है? श्रोता के ज्ञानानुसार प्रवचन सामग्री जुटाना-सुनाना एक कुशल वक्ता का लक्षण है । लेकिन एक अकुशल वक्ता की जो उस्ले आता है, उसे ही बोलने का, श्रोताओं को सुनाने का आग्रह होता है। वर्तमान भौतिक युग के व्यस्ततम समय में आपकी चेतना धर्म से कैसी जुही रहे, इस मनोविज्ञान के साथ हो कुछ नियमों-उपनियों की परिचर्चा हमें करनी है । क्योंकि जो कभी मन्दिर जी नहीं जाते हैं समयाभाव के कारण उनमें भी मन्दिर जाने की ललक जगे और जो जाते हैं, उनमें दृढ़ता थदे ! आप पुस्तक को पढ़कर-देखकर घबड़ाये नहीं। आप आठ दिन तक थोड़ा-थोड़ा करके, पुनः - पुनः मात्र एक ही प्रवचन पदें। प्रवचन पढ़कर अनुभव करें कि हमें अभी तक घर से निकलकर मन्दिर जी आने तक की कितनी जानकारी थी और कितनी नहीं? आप पूरी पुस्तक एक साथ पढ़ने से घबड़ा सकते हैं कि इतनी सारी बातें कौन ध्यान रखें? बड़ा झंझट है । अतः आप आठ दिन में मात्र एक ही प्रवचन यार-वार पढ़ें, जिससे आपके संस्कारों में मन्दिर की हर क्रिया का चिन्तन-भाव पूर्ण ढंग से उतर आयेगा । पुनः आठ दिन बाद इस पड़ी हुई विधि को प्रयोग में लायें । प्रथम प्रयोग विधि को प्रारम्भ करते ही दूसरा प्रवचन पढ़ना शुरू करें। इसी प्रकार आठ दिन पढ़ना फिर उसका प्रयोग करना। इस तरह लगभग पैंतालिस दिनों में आप एक नई प्रयोग विधि से मन्दिर जी में आना सीख जायेंगे | इन्हीं दिनों में आप णमोकार मंत्र, चत्तारि दण्डक आदि को अर्थ सहित याद करते हुए पुस्तक के अलावा कुछ स्तुति, स्तोत्र पाठ आदि मौखिक याद कर लें। मन्दिर जी सामग्री ले जाने के लिए एक-एक डिब्धी परिवार के हर सदस्य को दे दीजिए | डिब्बी में उतनी ही सामग्री रखें जितनी उस दिन आपको मन्दिर जी में बढ़ानी है | इससे आपका प्रमाद छुटेगा एवं शुभ संकल्प की तरफ आपका ध्यान भी रहेगा। , इस 'मन्दिर' पुस्तक की अभी तक आठ संस्करणों में लगभग दस हजार प्रतियाँ छप चुकीं हैं। अब नवमीं संस्करण से विशेष चिन्तनपूर्ण प्रवचनों की श्रृंखला के साथ निकल रही हैं। इस कृति को व्यवस्थित संस्करण में तैयार करने के लिये यानि कैसंट से प्रवचन सुनकर, पृष्ठों पर उतारने का दुरुह कार्य सुश्री दीप्ति(शालु) जैन, सरकुलर रोड, फिरोजाबाद (उ.प्र.) एवं सन्दीप कुमार जैन, नया शहर इटावा (उ. प्र.) ने बड़ी लगन और मेहनत से किया है। दोनों श्रद्धालु

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