Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 74
________________ ६० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र का विपाक होता है, सुख का अनुभव होना होता है वहां वह कर्म अपने साथ नो-कर्म को रखेगा, क्योंकि पुद्गलों को ग्रहण करना सात वेदनीय का कार्य नहीं है । बाहर से पुद्गलों को ग्रहण किए बिना सुख-दुःख का संवेदन हो नहीं सकता । उस सहयोगी कर्म की संज्ञा है- नो-कर्म । सुख के संवेदन में शुभ नाम-कर्म का योग रहता है । वह वेदनीय कर्म का साथी बनता है। उसके निमित्त से इष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है । वे इष्ट पुद्गल सुख के संवेदन में निमित्त बनते हैं । असात वेदनीय कर्म विपाक के समय अशुभ नाम-कर्म का योग रहता है । उससे अनिष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है और वह दुःख के संवेदन में निमित्तभूत बनता है | वेदनीय कर्म केवल नाम कर्म को ही नहीं, मोहनीय कर्म को भी साथ में लेता है । इस सहयोगी के बिना सुख-दुःख के अनुभवों की स्थिति का पूरा निर्माण नहीं होता। कर्म सीधा फल नहीं देता । वह पहले विपर्यय पैदा करता है | मोहनीय कर्म का यह काम है कि वह पहले दृष्टिकोणों को विपर्यस्त करता है । दृष्टिकोण का विपर्यय होते ही रोग की पूर्व भूमिका तैयार हो जाती है । मनोकायिक बीमारियां मिथ्या दृष्टिकोण के कारण पैदा होती हैं । कुछ बीमारियां मिथ्या चारित्र के कारण होती हैं । आचार, विचार और व्यवहार की विपरीतता के बिना बीमारी को पैदा होने का अवसर नहीं मिलता । सारी भावनात्मक बीमारियों का यही निमित्त बनता है। मोहनीय कर्म अपने दोनों कार्य- मिथ्या दृष्टिकोण और मिथ्या चारित्र को पूरा कर वेदनीय के विपाक में सहयोगी बनता है । असात वेदनीय का विपाक होता है तब वह मिथ्या दृष्टिकोण और मिथ्या चारित्र को प्रस्तुत कर देता है और सात वेदनीय के विपाक में सम्यग् दृष्टिकोण और सम्यक् चारित्र प्रस्तुत हो जाता है । रसायन है आचार - आयुर्वेद का आधार है— रसायन । यह सबसे बड़ी औषध विधि है। रसायन जरा और व्याधि को नष्ट करने वाला होता है । अनेक प्रकार के रसायन बने । बतलाया गया कि आचार सबसे मुख्य रसायन है। यदि आचार सम्यग् नहीं है तो कोई अन्य रसायन कार्यकारी नहीं होता । अनेक रसायन खाने पर भी व्यक्ति स्वस्थ नहीं होता । स्वास्थ्य के प्रसंग में आचार को नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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