Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 167
________________ अनुप्रक्षा आर स्वास्थ्य १५३ भोजन कब करें? __ स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार करें तो भोजन का समय सूर्योदय के बाद होता है । महावीर के सिद्धान्त की मीमांसा करें तो कहा जाएगा— भोजन का समय सूर्योदय से ४८ मिनट बाद होना चाहिए । जैन साधना का प्रसिद्ध सूत्र है नवकारसी। इसका तात्पर्य है— सूर्योदय के पश्चात् अड़चास मिनट तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए । स्वास्थ्य के लिए यह भी कहा गया हैजब तक सूर्योदय के बाद दो-तीन घण्टा न बीत जाए, तब तक अन्न अथवा गरिष्ठ पदार्थ नहीं खाने चाहिए। इसका कारण स्पष्ट है- रात में पाचनतंत्र निष्क्रिय रहता है। सूर्योदय के पश्चात सूर्य की रश्मियां मिलती हैं, पाचनतंत्र सक्रिय हो जाता है । जब तक वह पूर्ण सक्रिय न बन जाए, तब तक सुपाच्य भोजन ही लाभप्रद हो सकता है । पाचनतंत्र की निष्क्रियता की अवस्था में जो खाया जाता है, वह खाया हुआ भी अधखाया-अधपका जैसा रह जाता है । जो पाचक-स्राव होते हैं, वे पाचनतंत्र की निष्क्रियता की स्थिति में सवित नहीं होते इसलिए खाया हुआ भोजन पचता नहीं है । वह विकृति का कारण बन जाता है । कितनी बार खाएं ? भोजन के सन्दर्भ में महावीर का एक सिद्धान्त है— एगभत्तं च भोयणंदिन में एक भोजन करें । बार-बार और बहुत ज्यादा खाने की प्रवृत्ति ने अनेक बार समस्याएं पैदा की हैं । जो व्यक्ति दिन में एक बार भोजन करते हैं, उन्हें शायद जीवन में दवा की बहुत आवश्यकता ही नहीं होती । ऐसा व्यक्ति प्रायः स्वस्थ रहता है । हम प्राचीन भारतीय पद्धति को देखें । कुछ लोग दिन में एक बार ही खाते थे । दिन में न प्राताराश, न कुछ और खाना । बहुत लोग दो बार खाते थे । दो बार से ज्यादा खाने की विधि बहुत कम थी। आज स्थिति यह है-तीन बार भोजन और पांच-सात बार चाय पीना तो आम बात हो गई है । व्यक्ति इतना खा लेता है कि आंतों को कभी विश्राम करने का मौका ही नहीं मिलता | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186