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१५४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र कितने पदार्थ खाएं ?
स्वास्थ्य के लिए यह विवेक भी आवश्यक है कि भोजन में कितने पदार्थ खाएं । एक वृद्ध आदमी भोजन में सात-आठ चीजों से ज्यादा खाएगा तो पेट पर इतना भार बढ़ जाएगा कि वह पचेगा ही नहीं । वह अतिरिक्त भोजन बीमारी के पनपने में ही काम आएगा । इसीलिए यह विवेक होना चाहिए कि कितनी वस्तुएं खाएं । प्राकृतिक चिकित्सक कहते हैं- एक साथ दो अन्न मत खाओ, केवल एक ही अन्न खाओ । बहुत ज्यादा वस्तुएं मत खाओ ।
आहार-संयम से जुड़ी इन बातों का विवेक वृद्ध-स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
० रात्रि भोजन न करें। ० सूर्योदय के बाद नवकारसी करें । ० दिन में एक बार भोजन करें । ० अधिक वस्तुएं न खाएं । ० गरिष्ठ भोजन न करें ।
वृत्ति का संयम
स्वास्थ्य का तीसरा सूत्र है- वृत्ति का संयम । मनुष्य को वृद्ध होने के साथ अपनी वृत्तियों का संयम करना चाहिए | उसमें विशेषतः भावात्मक संयम होना चाहिए । क्रोध, मान, माया और लोभ की अल्पता होनी चाहिए। स्थिति यह है कि जैसे-जैसे बुढ़ापा आता है, वैसे-वैसे क्रोध बढ़ जाता है, चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है, लोभ भी बहुत बढ़ जाता है । युवा पुत्र की शादी का प्रसंग है । पुत्र कहता है— मैं दहेज नहीं लूंगा, मुझे धन नहीं चाहिए । पिता कहता है— तुम चुप रहो। तुम क्या जानते हो ? शादी पुत्र की हो रही है और धन भी पुत्र को लेना है, किन्तु पिता का लोभ उसकी इस इच्छा को ठुकरा देता है कि दहेज न लिया जाए । परिणाम यह होता है कि पिता
और पुत्र में तनाव की स्थिति बन जाती है । जिस बुढ़ापे में यह स्थिति होती है, वह बुढ़ापा कभी अच्छा नहीं होता । उसका घर में भी तिरस्कार होता है, अपमान और अवज्ञा होती है, घर से बाहर भी सम्मान नहीं मिलता । वह वृद्ध मनुष्य स्वस्थ रह सकता है, जो संवेगों पर, इमोशन पर नियंत्रण
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