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अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य १५५ करना सीख जाए । जो व्यक्ति इन संवेगों को नियंत्रित करने का अभ्यास कर लेता है, उसका बुढ़ापा शान्ति के साथ बीतता है । जिस व्यक्ति की बुढ़ापे में आकांक्षाएं बहुत बढ़ जाती है, वह शान्त और स्वस्थ जीवन नहीं जी सकता । एक वृद्ध व्यक्ति यह चाहता है— एक व्यक्ति निरंतर मेरे पास बैठा रहे, मुझसे बातें करता रहे । यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो खिसियाना, चिड़चिड़ाना आदि वृत्तियां शुरू हो जाती हैं । उसकी यह वृत्ति ही अशान्ति और अस्वस्थता का कारण बन जाती है । स्वास्थ्य की दृष्टि से यह जरूरी है कि क्रोध शान्त रहे, अहंकार भी शान्त रहे । व्यक्ति अहंकार पूर्ण बातें न करे । इस प्रकार की गर्वोक्तियां न करे— 'मैं जब युवा था, तब पहाड़ को भी एक छलांग में लांघ जाता था ।' माया और लोभ को भी त्यागे । यह कषाय का उपशमन, वृत्तियों का संयम वृद्ध स्वास्थ्य का महान् सूत्र है ।
घबराएं नहीं
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति बुढ़ापे से न घबराए और न असावधान रहे । वह सावधान और जागरूक बन जाए । यह सोचे- बुढ़ापा सामने है । मुझे बुढ़ापे को सुखद बनाने की योजना बना लेनी चाहिए । महावीर ने मरने के लिए भी एक योजना बनाई । जब व्यक्ति को यह लगे कि अब शरीर नहीं टिकेगा, तब उसे समाधिमरण की तैयारी कर लेनी चाहिए । महावीर ने समाधि-मरण का व्यवस्थित दर्शन प्रस्तुत किया । व्यक्ति कैसे शरीर त्याग करे, इसकी प्रक्रिया बतलाई । इसी प्रकार बुढ़ापे के लिए भी योजना बनानी चाहिए । जब व्यक्ति साठ वर्ष का हो जाए तब यह सोचे कि मुझे दस वर्ष अथवा बीस वर्ष जीना है अथवा उससे अधिक भी जीना है तो कैसे जीवनक्रम से जीना है । आज मैनेजमेंट का युग है । प्रत्येक बात को मैनेज किया जाता है । वृद्धावस्था के लिए भी एक नियोजित क्रम होना चाहिए, जिसके ये सारे अंग बन जाएं
० मुझे अभय रहना है ।
० मुझे आहार का संयम करना है ।
• अपनी वृत्तियों का संयम करना है ।
ये तीन सूत्र जीवन-चर्या के अंग बन जाएं तो वृद्ध आदमी बहुत स्वस्थ
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