Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 142
________________ १२८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र सूचना देता है आभामण्डल रंग, भाव और आभामण्डल- इन सबके साथ जुड़ा है स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य का संबंध । जिस व्यक्ति का आभामण्डल जितना मलिन है, वह व्यक्ति उतना ही मानसिक और भावात्मक बीमारियों से ग्रस्त रहेगा, अनेक व्याधियों से पीड़ित रहेगा । जिस व्यक्ति का आभामण्डल बहुत पवित्र है, वह आरोग्य का वरण करेगा, शरीर, मन और भावना–तीनों स्तरों पर स्वस्थ रहेगा । वर्तमान के विज्ञान में एक पद्धति विकसित हुई है—आभामण्डल का अध्ययन करना और आभामण्डल के आधार पर रोग का निदान करना । इस पद्धति का विकास हो रहा है । आभामण्डल जितना सही निर्णय प्रस्तुत करता है, उतना कोई यंत्र नहीं कर सकता । यंत्रों की स्थिति तो यह भी है कि वे कभी कभी बीमार को स्वस्थ बता देते है और स्वस्थ को बीमार बता देते हैं | आभामण्डल कभी किसी को धोखा नहीं देता । यह माना गया शरीर में जो बीमारी होने वाली है, उसकी छह अथवा बारह महीने पहले आभामण्डल सूचना दे देता है । उससे यह पता चल जाता है कि अमुक प्रकार की बीमारी होगी और वह इतने समय बाद प्रकट होगी । इस तथ्य से हम समझ सकते है कि आभामण्डल के साथ आरोग्य का संबंध कितना है । गंध, रस और स्पर्श व्यक्ति की प्रवृत्ति के साथ जो पांच वर्ण जुड़े हए हैं, वे प्रशस्त भी हो सकते हैं, अप्रशस्त भी हो सकते हैं । इसी प्रकार गंध के लिए बतलाया गया। गंध दो प्रकार की होती है दुर्गंध और सुगंध । यदि हमारी भावधारा पवित्र है तो सुगंध प्रस्फुटित होगी । यदि भावधारा अपवित्र है तो दुर्गंध आने लगेगी। कहा गया- तीर्थंकर का श्वास कमल जैसी सुगंध वाला होता है। इसका कारण क्या है ? कारण है पवित्र भाव । भाव पवित्र है तो श्वास के पुद्गल भी प्रशस्त होंगे । यह कमल की सुगंध उन्हीं प्रशस्त पुद्गलों से आती है | जो पवित्र भावधारा के पुद्गल हैं, उनमें सुगंध पैदा हो जाती है। यदि भावधारा अपवित्र है तो सड़े हुए कलेवर जैसी दुर्गंध भी आ सकती है। रस और स्पर्श के संदर्भ में भी ऐसा ही होता है । यदि भावधारा पवित्र है तो एकदम पके हुए आम और केले जैसा मीठा रस आएगा | यदि भावधारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186