Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 158
________________ सौ वर्ष वाले पुरुष की दस अवस्थाएं बतलाई गई । दस-दस वर्ष की एक अवस्था । दस अवस्थाएं और शतायु जीवन : १. बाला २. क्रीड़ा ३. मंदा ४. बला शिशु एवं वृद्ध स्वास्थ्य ६. हायिनी ७. प्रपंचा ८. प्राग्भारा ९. मृन्मुखी १०. शायिनी ५. प्रज्ञा ये दस अवस्थाएं हैं । प्रत्येक अवस्था में अलग-अलग प्रकार की वृत्तियां होती हैं । इस विषय पर बहुत मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया— किस दशक में व्यक्ति कैसा आचरण और कैसा व्यवहार करता है ? शिशु और वृद्ध स्वास्थ्य के संदर्भ में दो अवस्थाओं पर विचार करना है । पहली है बाल अवस्था । दूसरी है वृद्धावस्था । एक जीवन का पहला दशक है और दूसरा - जीवन का सातवां दशक | Jain Education International लब्धि वीर्य और करण वीर्य गर्भ से शिशु की अवस्था का प्रारंभ होता है । गर्भ से लेकर तीन-चार वर्ष तक जो बच्चा होता है, उसका प्राण भी विकसित नहीं होता, कर्मजाशक्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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