Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 156
________________ १४२ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र को विकृत बनाए हुए है । हमारी प्रकृति है आरोग्य । विजातीय तत्व विकृति पैदा करता है और व्यक्ति बीमार हो जाता है । विकृति के निवारण का एक उपाय है अपान शुद्धि । अपान शुद्धि का एक शक्तिशाली प्रयोग है ह्रां ह्रीं का जप । कोई व्यक्ति दस मिनट तक यह जप करे तो उसे अनुभव होगा कि इससे शारीरिक ही नहीं, मानसिक विकारों का भी विरेचन होता है । दीर्घश्वासप्रेक्षा एक प्रयोग है दाघश्वास प्रक्षा | हृदय रोग की समस्या के लिए यह भी बहुत उपयोगी है । मूल बात यह है कि इन प्रयोगों के द्वारा प्राणशक्ति बढ़ती हैं, इम्युनिटी सिस्टम शक्तिशाली बनता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होती है। बीमारी का विरेचन होने लग जाता है । यदि प्राणशक्ति को प्रबल कर प्राणसंचार का प्रयोग किया जाए और मानसिक चित्र का निर्माण किया जाए तो एक दिन ऐसा आ सकता है, जिस दिन हृदय की धमनी के अवरोध बिल्कुल समाप्त हो जाएं । हृदय रोग और उसके लिए निवारण की इस चर्चा का समाहार करें । हृदयरोग के तीन प्रमुख कारण हैं ० अध्यवसाय, ० आहार, ० बाह्य निमित्त | हृदयरोग निवारण के कुछ सूत्र स्पष्ट हैं • अनेकान्त दृष्टिकोण का विकास, ० कायोत्सर्ग, ० प्राण और अपान का संतुलन । ० मंत्र चिकित्सा, ० दीर्घश्वासप्रेक्षा, ० रंग चिकित्सा । आजके वैज्ञानिक यह मानते हैं—ध्वनि, प्रकाश, और रंग- ये सारे एक ही जाति के प्रकपंन हैं । प्रकाश का उनचासवां प्रकंपन है —— रंग । ध्वनि भी रंग पैदा करती है । इसीलिए कहा जाता है कि रंग को सुना जा सकता है, ध्वनि को देखा जा सकता है । विद्युत् उपकरणों के द्वारा ऐसा करना संभव है । ध्वनि और रंग- दोनों का गहरा सम्बन्ध हमारे जीवन के साथ है । लाडनूं की घटना है । एक साध्वी का रक्त बहुत पतला हो गया । नाक से रक्त निरंतर गिरने लगा । अनेक डाक्टरों को दिखाया, चिकित्सा करवाई पर कोई समाधान नहीं निकला । ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब जीवन बच पाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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