Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 155
________________ हृदयरोग : कारण और निवारण १४१ ध्वनिविज्ञान और मंत्रविज्ञान के आधार पर इसके परिणामों की मीमांसा की जा सकती है । हृदयरोग के लिए यह उपयोगी मंत्र है । यह अनेक लोगों के अनुभवों से प्रमाणित है । मंत्र और रंग 1 रोग का रंग के साथ भी संबंध होता है । कौन-सा रंग कौन से अवयव को पुष्ट करता है, यह बोध हो तो बहुत लाभ उठाया जा सकता है । वह कौन-सा रंग है, जो लीवर को शक्तिशाली बनाता है । वह कौन-सा रंग है, जो हृदय को शक्तिशाली बनता है । प्रत्येक अवयव का भी अपना रंग होता है । बाहर से दूसरे सहायक रंगों को ग्रहण करके भी हम उस अवयव को पुष्ट बना सकते हैं। अक्षरों के भी अपने रंग होते हैं । ह्रां और ह्रीं का अपना रंग है । रंगों का भी परस्पर कम्बीकेशन होता है । किस प्रकार के रंग परस्पर मिल कर किस प्रकार की स्थिति पैदा करते हैं, यह अन्वेषण का विषय है। किन्तु रंग से हम प्रभावित होते हैं, यह स्पष्ट है । इसी प्रकार अनेक मंत्र ऐसे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं । हम ह्रां ह्रीं इस मंत्र का ही संदर्भ लें । प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव कर सकता है कि शरीर में जो विकार पैदा होता है, हमारी रोग निरोधक शक्ति को कमजोर करता है, उस विकार को निकालने के लिए ह्रां ह्रीं का प्रयोग बहुत शक्तिशाली है । प्राचीन आचार्यों ने इस विषय पर बहुत चिन्तन किया । मूल बात है विकार का निष्कासन । प्राकृतिक चिकित्सक भी इस बात पर बल देते हैं—— विजातीय तत्व का संचय नहीं होना चाहिए । जितना विजातीय तत्व का संचय उतनी ही बीमारी । जितना विजातीय तत्व का निष्कासन उतना ही आरोग्य | हमारे शरीर में इतना विजातीय तत्व संचित रहता है, जिसकी कल्पना करना भी कठिन है । स्थूल मल भी इतना संचित हो जाता है कि कब्ज की समस्या सदा बनी रहती है । उससे हृदय भी प्रभावित होता रहता है । कितनी दवा देते चले जाओ, ठीक नहीं होता । क्योंकि मल का बहुत संचय है । जब तक उसका शोधन नहीं होगा, दवा क्या असर करेगी ? दवा भी उसमें विष बनती चली जाती है। केवल स्थूल मल ही संचित नहीं है, प्रत्येक कोशिका में, कोशिका के अणु - अणु पर मैल संचित रहता है । वह मल ही हमारी प्रकृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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