Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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लेश्याध्यान और स्वास्थ्य १२७ पर छह लेश्याओं की बात कही । यह मात्र संकेत है । विस्तार में जाएं तो अनेक रंग बन जाते हैं । उनका विश्लेषण भी लेश्या के आधार पर किया जा सकता है और यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कौन-सा रंग कैसा प्रभाव डालता है ।
रंग, भाव और आभामंडल
लेश्या के संदर्भ में रंग, भाव और आभामंडल-- तीनों पर विचार करें। लेश्या की वर्गणा अथवा पुद्गल हैं । उनका अपना रंग होता है । वे रंग हमारी भावधारा को प्रभावित करते हैं । लेश्या का एक अर्थ हो गया रंग। लेश्या का एक अर्थ है भावधारा । रंग और भावधारा दोनों में गहरा संबंध है, व्यापक संबंध है । अमुक प्रकार का रंग आया है तो अमुक प्रकार का भाव बन जाएगा और अमुक प्रकार का भाव आया है तो अमुक प्रकार का रंग हो जाएगा। जैसा रंग वैसा भाव और जैसा भाव वैसा रंग । बोलचाल की भाषा में कहा जाता है- अमुक व्यक्ति का भाव बदला और रंग बदल गया । ये रंग भाव को भी प्रभावित करते हैं और तैजस शरीर की रश्मियों को भी प्रभावित करते हैं । शरीर से जो ऊर्जा निकलती है इलेक्ट्रो मेग्नेटिक फील्ड बनाती है, वह रंगों से संबंधित है । हमारा शरीर विद्युत् शरीर है । इससे निरंतर, शरीराकार आकृतियां निकलती रहती हैं | उसके साथ रंग तुल्य रश्मियों का योग होता है | हमारे शरीर के चारों ओर रंग का मण्डल बन जाता है, प्रभामंडल बन जाता है । श्रेष्ठ महापुरुषों के चित्रों को जहां प्रदर्शित किया जाता है वहां उनके सिर के पीछे प्रभा का मण्डल दिखाया जाता है। उसे भामण्डल कहा जाता है | एक शरीर के चारों ओर रश्मि का वलय होता है, उसे आभामण्डल कहा जाता है । आभामण्डल के लिए हेलो और आभामण्डल के लिए ओरा शब्द का प्रयोग किया जाता है । यह आभामण्डल और आभामण्डल वैसा ही होता है जैसी लेश्या होती है ।।
जिस व्यक्ति का भाव निर्मल और पवित्र होता है, उसका भामण्डल और आभामण्डल बहुत शक्तिशाली बन जाता है । जिस व्यक्ति का भाव अशुद्ध होता है, जो बुरे विचारों और बुरी धारणाओं से आक्रांत रहता है, जो हिंसा आदि दृष्प्रवृत्तियों में रहता है, उसका आभामण्डल निस्तेज, दुर्गंधयुक्त और मलिन बन जाता है ।
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