________________
लेश्याध्यान और स्वास्थ्य १२५
हिंसा करता है । हिंसा में कितने रंग होते हैं ? कितनी गंध होती है ? कितने रस होते हैं ? कितने स्पर्श होते हैं । सबसे पहला प्रश्न है रंग का । महावीर ने कहा- गौतम ! हिंसा में पांच रंग हैं ।
विचित्र प्रश्न और विचित्र उत्तर । इस सूत्र की व्याख्या लेश्या सिद्धांत और वर्तमान रंगविज्ञान के आधार पर ही की जा सकती है। यदि अठारह पापों का इस दृष्टि से विश्लेषण किया जाए तो एक स्वतंत्र ग्रंथ प्रस्तुत हो जाए | यह प्रश्न स्वाभाविक है- एक आदमी बहुत ज्यादा हिंसा करता है। दूसरा आदमी उससे कम करता है । तीसरा आदमी उससे भी कम करता है । एक व्यक्ति ऐसा भी है जो चींटी को देखते ही प्रकंपित हो जाता है और अपना पैर पीछे खींच लेता है । एक व्यक्ति ऐसा भी होता है, जो चींटी के ढेर को जानबूझ कर कुचल डालता है किन्तु उसका हृदय प्रकंपित नहीं होता। आखिर कारण क्या है ? यह प्रभाव है रंगों का | जिस व्यक्ति का रंग जितना ज्यादा अप्रशस्त है, उसकी उतनी ही हिंसा में रुचि हो जाती है, आकर्षण पैदा हो जाता है । हिंसा करते हुए उसके चित्त में प्रकंपन नहीं होता। जिस व्यक्ति का रंग जितना प्रशस्त होता है वह व्यक्ति उतना ही हिंसा से विरत रहता है।
रंग का प्रभाव
यह एक नियम बनाया जा सकता है- जितना जितना अप्रशस्त रंग उतनी उतनी हिंसा में प्रवृत्ति । जितना जितना प्रशस्त रंग उतनी उतनी हिंसा से निवृत्ति। वर्तमान रंग विज्ञान में माना गया है- बैंगनी रंग अच्छा होता है तो हिंसा की वृत्ति कम हो जाती है । बैंगनी रंग अच्छा नहीं होता है, अप्रशस्त होता है तो हिंसा की वृत्ति बढ़ जाती है । इसी प्रकार झूठ बोलने के साथ भी रंगों का संबंध है, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह के साथ भी रंगों का संबंध है । एक व्यक्ति बहुत क्रोध करता है, बहुत चिड़ाचड़ा है तो खोजना होगा कि किस रंग के प्रभाव में वह जी रहा है ।।
सोवियत संघ की घटना है । एक विद्यालय के विद्यार्थी बहुत उदंड और उच्छृखल थे । अध्यापक परेशान हो गए | सोचा-सारे विद्यार्थी उच्छृखल कैसे बन गए ? इसका कारण क्या है ? अनेक चिकित्सकों को बुलाया, विशेषज्ञो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org