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लेश्याध्यान और स्वास्थ्य
एक आदमी आम खाता है, संतरा खाता है । एक आकार दिखाई देता है । रंग विज्ञान की दृष्टि से विचार करने पर निष्कर्ष होगा - वह कोई ठोस द्रव्य नहीं, रंग का ही सघन रूप है । हमारी दुनिया में सब कुछ रंगीन ही रंगीन है । रंगविहीन आत्मा है अथवा कुछ अन्य तत्व हो सकते हैं । सारा दृश्य जगत्, पौद्गलिक जगत् रंगीन है । रंग के भी नाना रूप हैं । प्रकंपन की एक निश्चित आवृत्ति पर रंग सघन बनता है और वह दृश्य बन जाता है ।
विचित्र प्रश्न : विचित्र उत्तर
यह स्वीकार करना चाहिए - सारी दुनिया रंगों की दुनिया है । केवल रंगमंच पर ही रंगों का अभिनय नहीं होता, प्रदर्शन नहीं होता किन्तु जीवन के हर क्षण में, जीवन की हर प्रवृत्ति में रंग ही रंग है । रंग का एक रूप है रश्मि । लेश्या का सिद्धांत रश्मि का सिद्धांत है, रंगों का सिद्धांत है । आज से ढाई हजार वर्ष पहले महावीर ने लेश्या - सिद्धांत का प्रतिपादन किया । उससे भी पहले भगवान् पार्श्व के समय में रंगों पर बहुत प्रकाश डाला गया । यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है— रंग किस प्रकार मनुष्य को प्रभावित करते हैं ? रंग का मनुष्य की वृत्तियों से क्या संबंध है ? हिंसा, असत्य, अस्तेय आदि अठारह प्रकार के पाप बतलाए गए हैं । गौतम ने पूछा- भंते ! एक व्यक्ति
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